[भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कई आयाम और विषय रहे। जहां एक ओर यह सत्ता पर काबिज होने का संघर्ष था तो दूसरी ओर आदिवासियों के लिए स्थानीय सामंतों, महाजनों व उन्हें संरक्षण प्रदान करनेवाले तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमतों से अपने अस्तित्व की रक्षा का सवाल। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का लेखन पक्षपातपूर्ण रहा है। यही वजह रही कि आदिवासियों के संघर्ष को इतिहास में समुचित स्थान नहीं मिल सका। इसका एक उदाहरण संताल आदिवासियों का विद्राह है, जो 1771 में तिलका मांझी ने शुरु किया था। बाद में 1855 में सिदो-कान्हू ने संताल विद्रोह को आगे बढ़ाया। यह हूल विद्रोह था। प्रस्तुत है इस विद्रोह का तिथिवार विवरण, जिसे रांची से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘प्रभातखबर’ से हू-ब-हू लिया गया है]
30 जून, 1855 : सिदो-कान्हू के आह्वान पर साहिबगंज के भोगनाडीह में विशाल जनसभा का आयोजन हुआ था। इस जनसभा में करीब 10 हजार संतालियों का जुटान हुआ।
1 जुलाई, 1855 : सुरेंद्र मा़ंझी के नेतृत्व में छोटा लाट साहेब जेम्स हेलिडे से मिलने लगभग दो सौ मांझी एवं परगनाओं का दल कोलकाता रवाना हुआ।
6 जुलाई, 1855 : महाजन एवं दरोगा के द्वारा निर्दोष हड़मा देश मा़ंझी, गरभू मा़ंझी, चाम्पा़ई एवं लोखोन को कैदी बनाकर भागलपुर चालान किया।
7 जुलाई, 1855 : बरहेट से पांच किलोमीटर दूर पंचकाठिया में दीघी थाना के दरोगा महेश लाल दत्त एवं आमड़ापाड़ा के महाजन केनाराम भगत की हत्या। उसी दिन सिदो-कान्हू के द्वारा हूल की शुरुआत की घोषणा।
8 जुलाई, 1855 : सिदो-कान्हू ने बरहेट को अपना राजधानी घोषित किया। इसी दिन भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन के द्वारा कैप्टेन ई. एफ. बैरो को राजमहल में सैनिक भेजने का आदेश।
9 जुलाई, 1855 : संताल फौज द्वारा पाकुड़ बाजार का घेराव।
10 जुलाई, 1855 : पाकुड़ धनुषपुजा में ब्रिटिश द्वारा मर्टेलो टॉवर का निर्माण।
11 जुलाई, 1855 : विद्रोह को दबाने के लिए मेजर बारोज का कहलगांव आगमन।
12 जुलाई, 1855 : सिदो-कान्हू, चांद-भैरो के नेतृत्व में संताल विद्रोहियों का पाकुड़ में प्रवेश। राजा के महल पर हमला।
13 जुलाई, 1855 : सातवीं सशस्त्र रेजिमेंट का कदमसार में आगमन और भारी सशस्त्र हमले की शुरुआत।
15 जुलाई, 1855 : पाकुड़ के नजदीक कदमसार में सातवीं सशस्त्र रेजिमेंट की संतालों के साथ सीधी भिड़ंत। इसी दिन सिदो-कान्हू के नेतृत्व में चार हजार विद्रोहियों द्वारा महेशपुर राजभवन पर हमला। जिसमें 200 से ज्यादा संताल मारे गए।
16 जुलाई, 1855 : प्यालापुर के युद्ध में संतालों के हाथ में ब्रिटिश सेना की हार।
19 जुलाई, 1855 : जुठाय मा़ंझी के नेतृत्व में रामपुरहाट के नारायणपुर में धनी महाजन बोराल के घर पर हमला।
20 जुलाई, 1855 : भागलपुर और राजमहल से दक्षिण पश्चिम में और उत्तर पश्चिम तालडंगा से सैंथिया तक तत्कालीन भागलपुर जिले के उत्तर पूर्व क्षेत्र पर संतालों का पूर्ण कब्जा।
21 जुलाई, 1855 : ब्रिटिश सेनाओं की काटना ग्राम में पराजय।
23 जुलाई, 1855 : बीरभूम के गौनपुरा के प्रसिद्ध व्यापार केंद्र ध्वस्त।
24 जुलाई, 1855 : मुर्शिदाबाद, बरहरवा और रघुनाथपुर में ब्रिटिश सेनाओं की जीत और अनेक संताल वीरों की शहादत।
27 जुलाई, 1855 : नागौर से छह मिल की दूरी पर लेफ्टिनेंट टूलमान और फाक्स की सेना और आठ हजार संताल विद्रोहियों के बीच मुठभेड़।
17 अगस्त, 1855 : ब्रिटिश सरकार द्वारा संतालों को आत्मसमर्पण करने के लिए कहना और अपील जारी करना। संतालों ने अपील ठुकराया।
19 अगस्त, 1855 : पिंडरा गांव के भोगोन मांझी एवं मांझिया मांझी ने मिलकर सिदो को गिरफ्तार करवाया।
16 सितंबर, 1855 : मोछिया एवं कासीजोला के राम परगना और सुंदरा मांझी के नेतृत्व में उपरबंधा पुलिस स्टेशन और गांव ध्वस्त।
अक्टूबर, 1855 का दूसरा सप्ताह : संताल विद्रोहियों द्वारा अम्बाहारला मौजा को लूटा गया।
08 नवंबर, 1855 : सिदो द्वारा एसले ईडन के सामने विद्रोह कबूल किया गया।
10 नवंबर, 1855 : ब्रिटिश शासन द्वारा मार्शल लॉ लागू किया गया।
नवंबर, 1855 का तीसरा सप्ताह : उपरबांधा (जामताड़ा) के घटवाल जोरवार सिंह के द्वारा कान्हू, चांद और भैरो की गिरफ्तारी। तीनों को सिउड़ी जेल भेजा दिया गया।
05 दिसंबर, 1855 : सिदो को फांसी की सजा का आदेश कोर्ट द्वारा जारी।
20 दिसंबर, 1855 : एसले ईडन के समक्ष कान्हू का बयान।
22 दिसंबर, 1855 : एसले ईडन द्वारा संताल परगना का स्थापना एवं एसपीटी एक्ट का लागू होना।
23 जनवरी, 1856 : छह हजार संताल विद्रोहियों द्वारा संग्रामपुर (मुंगेर) के लॉर्ड ग्रांट के महल में कब्जा।
27 जनवरी, 1856 : लेफ्टिनेंट फागन के पहाड़ी सैनिकों के साथ संतालों का भीषण युद्ध।
14 फरवरी, 1856 : कान्हू, चांद और भैरो का सिउड़ी कोर्ट में ट्रायल।
24 फरवरी, 1856 : कान्हू को भोगनाडीह स्थिति ठाकुरबाड़ी में दिन के दो बजे फांसी दिया गया।
25 फरवरी, 1856 : सिदो को पंचकाठिया में जहां से हूल की शुरुआत हुई थी, भारी भीड़ के सामने फांसी दी गई। चांद और भैरो को अंडमान द्वीप में कालापानी की सजा दी गई। वहीं पर उन दोनों की मौत हुई।
(इनपुट : डॉ. आर. के. नीरद)
टिप्पणी : यह तिथिवार विवरण रांची से प्रकाशित हिंदी दैनिक प्रभातखबर द्वारा प्रकाशित तथा यहां प्रकाशक की सहमति से पुनर्प्रकाशित
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