h n

अर्जक संघ की परंपरा के अुनसार तीन हजार से अधिक शादिया करा चुके हैं उपेंद्र पथिक

बिहार के उपेंद्र पथिक एक कीर्तिमान बना चुके हैं। वर्ष 1980 के दशक से वे अर्जक संघ की परंपरा के अनुसार शादी संस्कार कराते रहे हैं। पेशे से शिक्षक और एक परिवार का मुखिया होने के बावजूद यह काम वह कैसे कर पाते हैं तथा अबतक की उनकी यात्रा कैसी रही है, के बारे में वीरेंद्र यादव ने उनसे बातचीत की। पढ़ें उनसे बातचीत के आधार पर यह रपट

बिहार के मगध इलाके में उपेंद्र पथिक का नाम उनलोगों के बीच खास तौर पर लोकप्रिय है जो ब्राहमणवाद के इतर मानववाद में विश्वास करते हैं। इसकी वजह भी है। उपेंद्र पथिक ने अब तक तीन हजार से अधिक जोड़ियों की शादी अर्जक संघ की परंपरा से करवायी है। वे अर्जक संघ के सामान्‍य कार्यकर्ता से सांस्‍कृतिक प्रकोष्‍ठ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष तक की जिम्‍मेवारी का निर्वाह कर चुके हैं। पत्रकारिता के जरिए अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करनेवाले उपेंद्र पथिक वर्तमान में एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और अपने दिनचर्या का प्रारंभ वे जनसामान्य की तरह ही करते हैं। लेकिन सबसे खास है उनकी अपनी डायरी, जिसमें वह उन तिथियों का लेखा-जोखा रखते हैं, जब उन्हें अर्जक संघ की परंपरा के हिसाब से शादी कराने जाना होता है।

उपेंद्र पथिक का जन्म गया के वजीरगंज प्रखंड के केनारचट्टी के ओबीसी (कुशवाहा) परिवार में 27 मई, 1964 को हुआ था। अपने जन्मदिन के बारे में वे कहते हैं कि जिस दिन जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ था, उसी दिन उनका जन्म हुआ। पथिक चार भाई और एक बहन में सबसे बड़े हैं। पढ़ने-लिखने की इच्छा बचपन से थी। पढ़ने-लिखने की ललक ही रही कि 1980 में वह सक्रिय पत्रकार बन गए। तब से लेकर 2000 तक ‘प्रभातखबर’, ‘पाटलीपुत्र टाइम्स’, ‘हिंदुस्थान न्यूज एजेंसी’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘आज’, ‘संगम उर्दू डेली’ से संबद्ध रहे। इसके अलावा उन्होंने ‘दैनिक चुनौती’ (झरिया) वरीय उपसंपादक की भूमिका का निर्वहन किया।

पथिक जिस मुस्तैदी से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं, उतनी ही मुस्तैदी से अपने घर की जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करते हैं। उनकी अपनी तीन संतानें हैं, जिनमें दो बेटियां और एक बेटा शामिल है। बड़ी बेटी सरकारी स्कूल में शिक्षिका है और उसकी शादी भी अर्जक संघ के तरीके से हुई।

क्या आपने अपनी बेटी की शादी भी करवायी? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह शादी ब्रह्मदेव प्रसाद, जो कि सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं, ने करवायी। हालांकि अर्जक संघ में इस बात पर रोक नहीं है कि पिता अपनी बेटी या बेटे की शादी नहीं करा सकता। लेकिन अपने बच्चों की शादी खुद कराना अच्छा नहीं लगता है।

आपने पहली बार अर्जक संघ के तरीके से शादी कब और कहां करवायी? इस प्रश्न के जवाब में पथिक बताते हैं कि वह 1983-84 का साल था जब गया जिले के एक गांव में उन्हें शादी कराने का मौका मिला। वह एक नया अनुभव था। तब लोग विरोध भी खूब करते थे। इससे पहले वर्ष 1980 में दादा भुवन महतो के निधन के उपरांत ब्रह्मभोज के बदले शोकसभा का आयोजन किया तब गांव-समाज के लोग तो नाराज हुए ही, घर के नाते-रिश्तेदार भी नाराज हुए। एक बार तो गया के खिजरसराय में शादी कराने के दौरान ही एक ब्राह्मण के उकसावे पर लोगों ने लाठी निकाल लिया था। हालांकि बाद में उसी रात अर्जक संघ के तरीके से ही शादी संपन्न हुई। वहीं एक बार की घटना में पथिक के उपर गोली तक चलाई गई। इस घटना के बारे में पथिक बताते हैं कि नवादा जिले के हिसुआ प्रखंड के मनवा नामक गांव में यह घटना घटित हुई थी। मंच पर जब वे वर-वधू को शपथ ग्रहण करा रहे थे तभी किसी ने गोली चला दी। गोली तब ठीक मेरे बगल से गुजरी। 

अर्जक संघ की परंपरा के हिसाब से एक शादी में कितना समय लगता है? इस सवाल के जवाब में पथिक बताते हैं कि इसकी कोई समय-सीमा तय नहीं है। आधे घंटे से लेकर एक घंटे तक में शादी संपन्न हो जाता है। यह ब्राह्मणी परंपरा के जैसे नहीं है कि कम से कम तीन दिन तो लगेंगे ही। 

क्या आपको भी लोग दक्षिणा वगैरह दिया करते हैं? पथिक बताते हैं कि आजतक न तो किसी से मांगा और ना ही किसी ने दिया। अलबत्ता जब दूर जाना होता है तब कुछ लोगों ने आने-जाने का भाड़ा अवश्य दिया है। लेकिन आसपास के इलाके में शादी रहने पर यह भी कभी नहीं लिया। हालांकि अर्जक संघ के शादी करानेवाले कार्यकर्ताओं को संघ की तरफ से कुछ पारिश्रमिक तय होता है। लेकिन चूंकि मैं सक्षम हूं और सरकारी नौकरी में हूं तो मैंने कभी नहीं लिया।

पहले की तुलना में अब क्या परिवर्तन आया है? इस सवाल के पूछते ही पथिक बोल पड़ते हैं– पहले विरोध खूब होता था। लेकिन अब विरोध नहीं के बराबर होता है। अर्जक संघ की इस परंपरा को आगे ब़ढ़ाने में सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की भी अहम भूमिका रही है। मसलन पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी दर्जनों शादियों में खुद शरीक रहे हैं। इसके अलावा शेरघाटी के पूर्व विधायक व पूर्व मंत्री विनोद यादव भी अर्जक संघ की परंपराओं के प्रचार-प्रसार में सक्रिय रहते हैं। 

एक शादी समारोह में वर-वधू को शपथ दिलाते उपेंद्र पथिक

हालांकि उपेंद्र पथिक के लिए यह सब करना इतना आसान नहीं होता है। सामान्य तौर पर लोग उन्हें शादी के बारे में बताते हैं और उनसे शादी करवाने का अनुरोध करते हैं। कई बार तो यह केवल फोन पर ही होता है। और कई बार ऐसा भी होता है कि एक ही दिन में उन्हें अलग-अलग जगहों पर जाकर शादी करवानी पड़ती है। इस काम में समय तो लगता ही है और शादी यदि रात में हो तो फिर रात भर का जगना भी शामिल हो जाता है। 

वे बताते हैं कि अर्जक संघ का अपना रीति-रिवाज है। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक सकारात्‍मक और व्‍यावहारिक जीवन पद्धति है। इसे विज्ञान और संविधान के आधार पर निर्मित माना जाता है। अर्जक संघ ने समाज के विभिन्‍न पहलुओं के साथ विवाह की अपनी पद्धति को भी अंगीकार किया और इस पद्धति से शादी का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इस नयी पद्धति को अर्जक पद्धति से विवाह कहा जाता है। 

अर्जक पद्धति की शादी के संबंध में उपेंद्र पथिक कहते हैं कि उत्तर भारत में अर्जक संघ पहली बार शादी को लिखित रूप में लेकर आया। किसी भी धार्मिक व्‍यवस्‍था में शादी का लिखित स्‍वरूप नहीं रहा है। शादी को एक धार्मिक कर्मकांड के रूप स्‍वीकार किया गया और उसे समाज ने मान्‍यता भी दे दी। किसी पक्ष से इसका कोई लिखित दस्‍तावेज तैयार नहीं होता है। इससे अलग हटकर अर्जक संघ ने वैवाहिक विधान को लिखित रूप दिया। अर्जक पद्धति से विवाह में तीन चरण होते हैं। प्रतिज्ञापन, माल्‍यार्पण और मंगलकामना। प्रतिज्ञापन में वर-वधु लिखित शपथ पत्र पढ़ते हैं, जिसमें एक-दूसर के प्रति पारिवारिक और दांपत्‍य जीवन के प्रति निष्‍ठा जतायी जाती है। इसके बाद दोनों एक-दूसरे को माल्‍यार्पण कर दांप‍त्‍य सूत्र में बंधते हैं और फिर इस मौके पर उपस्थित लोग सुखमय दांपत्‍य जीवन की मंगल कामना करते हैं। इतना ही विधान अर्जक पद्धति से शादी में है। इसके बाद का प्रीति भोज वर-वधु और उनके परिजनों की इच्‍छा पर निर्भर करता है।

वे कहते हैं कि अर्जक प‍द्धति से विवाह कम समय और कम खर्चे में संपन्‍न हो जाता है। इसमें हवन और कन्‍यादान जैसी कोई कर्मकांड नहीं होता है। शपथ पत्र पढ़वाने का कार्य महिलाएं भी करती हैं। जबकि धार्मिक कर्मकांडों में शादी कराने का जिम्‍मा पुरुषों का होता है।

यह पूछने पर कि वे स्वयं सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और इतनी गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं तो क्या इसका असर स्कूल में शिक्षण पर नहीं पड़ता है, पथिक बताते हैँ कि वे जिस विद्यालय में पढ़ाते हैं, वहां सभी छात्र-छात्राएं सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों से आते हैं। उनके लिए गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना ही अर्जक संघ और अर्जक समाज के लिए प्राथमिकता है।

अर्जक संघ की चर्चा करते हुए पथिक ने कहा कि इसकी स्‍थापना उत्‍तर प्रदेश में 1968 में रामस्‍वरूप वर्मा ने किया था। वे समाजवादी धारा के राजनेता थे। सामाजिक भेदभाव और सामाजिक उत्‍पीड़न के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे थे। इसी क्रम में उन्‍होंने अर्जक संघ की स्‍थापना की। अर्जक संघ ने सुगम जीवन पद्धति को अपनाया और जातीय गैरबराबरी के खिलाफ एक सम्‍मानपूर्ण जीवन देने की राह बनायी। बाद में रामस्‍वरूप वर्मा बिहार में जगदेव प्रसाद के संपर्क में आये और इसके साथ बिहार में भी इसका प्रसार शुरू हुआ। प्रारंभ में इसमें कुशवाहा जाति के लोग ही जुड़ रहे थे, लेकिन बाद में इसकी सहजता को देखते हुए अन्‍य जातियों में भी इसका विस्‍तार हुआ। गैरसवर्ण जातियों में अर्जक संघ का आधार बढ़ा।   

उपेंद्र पथिक के अनुसार, अर्जक संघ से उनका जुडा़व 1980-81 में हुआ और इसके बाद लगातार उनका संबंध प्रगाढ़ होता गया। अर्जक संघ के सम्‍मेलनों में शामिल होने लगे और रामस्‍वरूप वर्मा समेत अनके नेताओं के संपर्क में आये। इस कारण उनका वैचारिक फलक व्‍यापक हुआ और परंपरागत रीतियों के साथ नयी जीवन पद्धति को अपनाया। वे कहते हैं कि 1981 में रामस्‍वरूप वर्मा, चौधरी महाराज सिंह भारती और कांशीराम गया में आयोजित अर्जक संघ के सम्‍मेलन में शामिल हुए थे। तीनों में आम सहमति बनी कि अर्जक संघ, शोषित समाज दल और बामसेफ को मिलकर सामाजिक बदलाव और जातिगत उत्‍पीड़न के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए। 1983 में बोकारो में आयोजित अर्जक संघ के राज्‍य सम्‍मेलन सह आंबेडकर मेला में दूसरी बार इन तीनों नेताओं की मुलाकात हुई। इसमें नयी कार्ययोजना को लेकर विमर्श हुआ, लेकिन बाद में कांशीराम ने राजनीति की अलग राह पकड़ ली। इसी सम्‍मेलन में उपेंद्र पथिक अर्जक संघ की राज्‍य कमेटी के सदस्‍य बने। इसके साथ अर्जक संघ के कार्यक्रमों, गति‍विधियों एवं आयोजनों में उनकी सक्रियता बढ़ती गयी। इस दौर में उन्‍होंने अर्जक पद्धति से विवाह के कार्यों से खुद को जोड़ा और यह सिलसिला अब तक जारी है। वे कहते हैं कि अर्जक पद्धति से शादी करने वालों को अर्जक संघ से जोड़ने का प्रयास भी किया जाता है। उनको सदस्‍य बनाया जाता है। इसके अलावा सवर्णों को भी अर्जक संघ से जोड़ा जाता है।

उपेंद्र पथिक कहते हैं कि अर्जक संघ का व्‍यापक प्रभाव मध्‍य बिहार में है। उन्‍होंने अधिकतर शादियां मगध के इलाकों में ही करवायी है। कुछ शादी रोहतास जिले में भी करवायी है। वे कहते हैं कि अब अनेक सामाजिक संगठन भी अर्जक पद्धति से शादी करवा रहे हैं। इसके माध्‍यम से अंतरजातीय विवाह को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। वे कहते हैं कि अर्जक संघ श्राद्ध को शोकसभा के रूप में किये जाने के पक्ष में है। श्राद्ध के नाम पर अनावश्‍यक खर्चे को रोकने का पक्षधर है।

उन्‍होंने कहा कि अर्जक संघ और उसकी मान्‍य जीवन पद्धति सामाजिक बदलाव से प्रेरित है। यह मानवतावादी है और सामाजिक बराबरी में विश्‍वास करता है। उसके अपने उत्‍सव के मौके को सादगीपूर्ण ढंग से मनाया जाता है। उपेंद्र पथिक कहते हैं कि अर्जक संघ एक वैचारिक पहल है। इस विचार के साथ लोगों को जोड़ने का प्रयास किया जाता है। इस पद्धति से शादी की शुरुआत भी वैचारिक पहल का विस्‍तार है और इसे बहुसंख्‍यक समाज में तेजी से मान्‍यता मिल रही है।  

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

वीरेंद्र यादव

लेखक हिंदी के प्रतिष्ठित वरिष्ठ आलोचक हैं

संबंधित आलेख

‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
‘मैं धंधेवाली की बेटी हूं, धंधेवाली नहीं’
‘कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे में रहे। सेक्स वर्कर्स भी नहीं चाहतीं। लेकिन जो समाज में बैठे ट्रैफिकर...
रेडलाइट एरिया के हम वाशिंदों की पहली जीत
‘बिहार में ज़्यादातर रेडलाइट ब्रोथल एरिया है। इसका मतलब लोग वहीं रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं, वहीं पर उनका पूरा जीवन चलता है और...
फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और...