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अग्निपथ योजना को देश के लिए अहितकर मान रहे हैं प्रयागराज के ग्रामीण

सुंदरपुर गांव के एक युवा आक्रोश में कहते हैं कि ‘ऐसा ही है तो यह नियम सांसदो, विधायकों और मंत्रियों के लिये भी होना चाहिये। और नरेंद्र मोदी को फौरन प्रधानमंत्री के पद से हट जाना चाहिए। वो 13 साल मुख्यमंत्री पद पर चिपके रहे और अब 8 साल से प्रधानमंत्री के पद पर कुंडली मारे बैठे हैं। आखिर दूसरों को भी तो देशसेवा का मौका उन्हें देना चाहिए।’ पढ़ें, सुशील मानव की रपट

केंद्र सरकार ने तय अवधि रोज़गार [फिक्स्ड टर्म इम्प्लॉयमेंट (एफटीई)] योजना का पहला प्रयोग सेना में करते हुए अग्निपथ योजना के रूप में किया है। इसके तहत सिपाही पद के लिए भर्ती सिर्फ़ 4 साल के लिए की जाएगी और इसके बाद सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी। एफटीई योजना को केंद्र सरकार ने 2018 में मंजूरी दी थी और तत्कालीन श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इस आश्य से संबंधित विधेयक सदन में पेश किया था। इस लिहाज से अग्निपथ योजना के जैसी योजना के लागू किये जाने की संभावना पांच साल पहले ही बनने लगी थी। हालांकि अब इसका व्यापक विरोध हुआ है। खासकर उत्तर भारत में यह विरोध खासा चर्चा में रहा। दूसरी ओर निलंबित कृषि क़ानूनों की तर्ज़ पर केंद्र सरकार, भाजपा शासित राज्य सरकारें और उसके सभी सांसद व विधायक तथा सेना के तमाम उच्च अधिकारी व सेनाध्याक्ष अग्निपथ योजना के फायदे गिना रहे हैं। आखिर इस योजना को लेकर ग्रामीण क्या सोचते हैं? इसी सवाल की तलाश फारवर्ड प्रेस ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) जिले के एक दर्ज़न गांवों के लाेगों से बातचीत कर जानने की कोशिश की। हालांकि इस दौरान लोगों के ऊपर सरकारी दमन का खौफ इस कदर स्पष्ट दिखा कि लोगों ने अपना नाम नहीं छापने और फोटो खिंचने की अनुमति तक देने से इंकार किया।

सबसे पहले पाली गांव की बात करते हैं, जहां पिछले कुछ सालों में कई युवा सेना में भर्ती हुए हैं। यहां अलसुबह और देर शाम युवा दौड़ते हुये दिखाई देते हैं। इस गांव के कुल 6 युवक सेना में कार्यरत हैं, जिसमें तीन पासी (दलित), ओबीसी समुदाय के यादव जाति के दो तथा एक कुर्मी जाति के हैं। इनके नाम हैं– संतोष भारतीया, प्रवीण भारतीया, दिलीप भारतीया, अरविंद यादव, किशन पटेल। जबकि ठाकुर समुदाय के दो लोग हाल ही में स्वैच्छिक सेवानिव‍ृत्ति (वीआरएस) लेकर सेना से कार्यमुक्त हुए हैं। एक फौजी के पिता सुंदरलाल (काल्पनिक नाम) बताते हैं कि उनके पास खेती-बाड़ी भी बहुत थोड़ी है। वे बताते हैं कि “जीने के लिये बटाई पर खेती करते हैं। ग़रीबी ने घर में डेरा डाल रखा था। मंझले बेटे ने हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ ही फौज की तैयारी की। वह फौज में चला गया। घर की हालत सुधर गई। सोचता हूं चार साल की नौकरी होती तो क्या कर पाते। तब तो हमारे घर के हालात न सुधरते। न घर बनता, न बेटियों की शादी हो पाती। एक साल तो ट्रेनिंग में चला जाता है। तीन साल की नौकरी में क्या होता?”   

इसी गांव के एक अन्य फौजी के पिता भुल्लर भारतीया (काल्पनिक नाम) कहते हैं कि “चार साल की मियादी नौकरी में हर गुज़रते दिन, हफ्ते, महीने के साथ सैनिक खुद असुरक्षित महसूस करेगा तो वह देश और लोगों की सुरक्षा क्या करेगा। अपनी जान हथेली पर लेकर जो सीमा पर दुश्मनों की गोली खाने को खड़ा होगा, क्या उसे इतना भी अधिकार नहीं मिलना चाहिये कि वो कम से कम नौकरी की चिंता से तो मुक्त रहे?”  

मसिका नैनी गांव में सोनू सोनकर, शशि भूषण मिश्रा, रजनीश मिश्रा, पुष्कर मिश्रा, अखिलेश मिश्रा, अम्बुज मिश्रा सेना में हैं। मसिका गांव के सर्वानंद मिश्रा (काल्पनिक नाम) अग्निपथ योजना के तहत सैनिकों के कार्यकाल को 4 साल तक सीमित किये जाने को अनुचित कदम बताते हैं। वहीं दैलापुर गांव के संपन्न परिवार के राजीव यादव अग्निपथ योजना को सही ठहराते हुए कहते हैं कि इससे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को देश की सेवा करने का मौका मिलेगा। उन्होंने बताया कि दैलापुर गांव के हरेंद्र यादव, धर्मेंद्र कुमार यादव, कौशलेंद्र यादव सेना में हैं। खुद सेना की तैयारी कर रहे ग्रामसभा ‘झंझरी’ निवासी शशिकांत यादव (काल्पनिक नाम) बताते हैं कि उनके गांव के लोग अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे हैं। कई लड़के शहर में हुए विरोध प्रदर्शन में भी शामिल होने गये थे। वो बताते हैं कि उनके गांव में एक ठाकुर और दो यादव जाति के युवक सेना में अपनी सेवायें दे रहे हैं।

चिलौड़ा गांव के प्रियमणि शुक्ला (काल्पनिक नाम) बताते हैं कि उनके गांव के पांच लड़के सेना में हैं। एक सोनकर जाति का लड़का है, एक चौरसिया का, तीन और लड़के हैं। सब दलित-पिछड़ी जातियों के। अग्निपथ कैसी योजना है, पूछने पर सूर्यमणि अफ़सोस जाहिर करते हुए कहते हैं कि “गांव के किसानों के, ग़रीबों के बच्चों के लिये सरकारी नौकरी का एकमात्र सहारा फौज ही था। जहां न घूस की ज़रूरत थी, न बहुत पढ़ाई-लिखाई की। विशेषकर उन वर्ग के बच्चों के लिए जो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध नहीं हैं। लेकिन सरकार ने नई नीतियों के जरिए उसे भी छीन लिया है। जात, परजात सब सरकार के इस फैसले से नाराज़ हैं।” 

उम्मीद की दौड़ : प्रयागराज के एक गांव में सेना में भर्ती के लिए दौड़ का अभ्यास करते दीखे अनेक युवा (तस्वीर : सुशील मानव)

सुंदरपुर गांव के अरविंद यादव फौज में हैं। इसी गांव के सूरज यादव (काल्पनिक नाम) अग्निपथ योजना को लेकर आक्रोशित हैं। वे अपने गुस्से का इज़हार यह कहकर करते हैं कि “ऐसा ही है तो यह नियम सांसदो, विधायकों और मंत्रियों के लिये भी होना चाहिये। और नरेंद्र मोदी को फौरन प्रधानमंत्री के पद से हट जाना चाहिए। वो 13 साल मुख्यमंत्री पद पर चिपके रहे और अब 8 साल से प्रधानमंत्री के पद पर कुंडली मारे बैठे हैं। आखिर दूसरों को भी तो देशसेवा का मौका उन्हें देना चाहिए।”  

बेलवा बरेठी गांव के शिवपूजन यादव, गांव भुलईकापूरा के जयसिंह यादव व राजू यादव, गांव बदलकापूरा के कमलेश यादव फौज में सेवायें दे रहे हैं। गांव बरईहरख के राजेश मिश्रा फौज से वीआरएस लेकर रिटायर हुए हैं। वो बताते हैं कि उनके गांव में सुनील पटेल, अजय पटेल, गुड्डू मिश्रा, श्याम नारायण मिश्रा आदि फौज में हैं। राजेश मिश्रा अग्निपथ योजना को सही ठहराते हुए कहते हैं कि “सबको तो फौज में नहीं लिया जा सकता है। इन्हीं में से 25 प्रतिशत लोगों को चार साल बाद फौज में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा, बाक़ी 75 प्रतिशत को चार साल का मौका मिल रहा है उन्हें उतने में ही संतोष करना चाहिए।” 

चिड़ौड़ा गांव के रमेश चौरसिया (काल्पनिक नाम) सेना की तैयारी में लगे हैं। सैनिकों को अग्निवीर में तब्दील करने वाली अग्निपथ योजना को बकवास करार देते हुए वह कहते हैं कि “हर छह माह और साल में सुनाई पड़ता है कि फलां सैनिक दुश्मन देश को सूचनायें लीक करते हुए पकड़ा गया। नौकरी की असुरक्षा और सुरक्षित भविष्य की चिंता अग्निपथ योजना के अग्निवीरों को इस अनैतिक कर्म की ओर जाने के लिये बाध्य करेगी। और आने वाले दिनों में इस तरह की ख़बरें आम हो जाएंगीं।” 

 (संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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