h n

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ठप्प, चुनावी लाभ के लोभ में केंद्र

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछ़ड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के अपने फैसले का जमकर प्रचार किया था। पिछड़े वर्ग के लोगों को यह संदेश देने के लिए यह किया गया कि उनके हक और संवैधानिक अधिकारों को बहाल करने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को मजबूत किया गया है। मोदी सरकार का आशय स्पष्ट था। एक बार फिर यह आयोग ठप्प पड़ा है। पढ़ें, अनिल चमड़िया की यह रपट

राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का न कोई अभी अध्यक्ष है और ना ही कोई सदस्य है। इसी साल 27 फरवरी को आयोग के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल सहनी की तीन साल की अवधि पूरी हो गई। इसके साथ ही उपाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार प्रजापति और सदस्य कौशलेन्द्र सिंह पटेल, सुधा यादव एवं अचारी थल्लोज का भी कार्यकाल समाप्त हो गया।

नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछ़ड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के अपने फैसले का जमकर प्रचार किया था। पिछड़े वर्ग के लोगों को यह संदेश देने के लिए यह किया गया कि उनके हक और संवैधानिक अधिकारों को बहाल करने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को मजबूत किया गया है। वैसे संवैधानिक अधिकार तो नागरिकों को भी है, लेकिन नागरिकों के पास तमाम तरह के संवैधानिक अधिकार होते हुए भी नागरिक समाज बेहद लाचार और आर्थिक-सामाजिक स्तर पर कमजोर होता गया है। संवैधानिक अधिकार की बहाली कोई कागज का टुकड़ा नहीं है। जिसे संवैधानिक अधिकार होता है, उसे उस अधिकार से ताकतवर और मजबूत दिखना भी चाहिए। मजबूत नहीं भी दिखे तो कम से कम उसे कमजोर महसूस नहीं करना चाहिए। लेकिन राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग लगातार खुद को कमजोर महसूस करता रहा है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ठप्प, चुनावी लाभ के लोभ में केंद्र

लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

संबंधित आलेख

वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...