नगदी-विहीन अर्थव्यवस्था का शोशा बहुजनों को उन गावों, ज़मींदारों और साहूकारों की याद दिला रहा है, जिन्हें वे पीछे छोड़ आये हैं- उस दौर की जब उन्हें उनके श्रम का भुगतान हमेशा वस्तुओं में किया जाता था, नकदी में नहीं। उन्हें उनकी मेहनत का वाजिब मुआवजा कभी नहीं मिलता था क्योंकि उसका हिसाब लगाने का कोई तरीका ही नहीं था