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यदि स्त्रियां वास्तव में अपनी आजादी चाहती हैं, तो उन्हें शुचिता की अवधारणा को जो लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग न्याय का प्रावधान करती है – को तत्काल नष्ट कर देना चाहिए। उसके स्थान पर स्त्री-पुरुष दोनों के लिए एकसमान, स्वःशासित शुचिता की अवधारणा विकसित होनी चाहिए। पढ़ें, पेरियार का यह आलेख
आप ऐसा पूछ सकते हैं कि ग्रामीण ऐसा नहीं करेंगे तो खेती कौन करेगा। यह प्रश्न कुछ ऐसा ही है, जैसे यह पूछना कि जब सभी सफाईकर्मी पढ़-लिखकर दूसरे काम करने लगेंगे तो सफाई का काम कौन करेगा। इस प्रश्न के सापेक्ष मेरा उत्तर होगा कि सभी समुदायों, जातियों को अपनी जनसंख्या के अनुपात में मानवीय श्रम के लिए आगे आना चाहिए
डॉ. आंबेडकर के धर्मपरिवर्तन और उनके व्यक्तित्व के बारे में पेरियार का यह भाषण दलित-बहुजन आंदोलन के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस भाषण में पेरियार धर्म और धर्मपरिवर्तन के संदर्भ में डॉ. आंबेडकर नजरिए और इस पूरे प्रसंग में उनकी खुद की भूमिका क्या रही, इसे भी उद्घाटित कर रहे हैं
यह आलेख ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ के एक कार्यक्रम में पेरियार द्वारा 1944 में दिए गए एक भाषण का लिखित रूप है। यह भाषण पुस्तकाकार भी प्रकाशित हुआ। इसके प्रारंभ में उन्होंने एक भूमिका भी लिखी है। प्रस्तुत है, आने वाली दुनिया के बारे में पेरियार की सोच
प्रत्येक महिला को एक उपयुक्त पेशा अपनाना चाहिए ताकि वह भी कमा सके। अगर वह कम से कम खुद के लिए आजीविका कमाने में सक्षम हो जाए, तो कोई भी पति उसे दासी नहीं मानेगा
पेरियार ई.वी.आर. ने वर्ष 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की थी। इस क्रम में उन्होंने आत्माभिमान विवाह को बढ़ावा दिया। वे मानते थे कि ‘पति’ और ‘पत्नी’ जैसे शब्द अनुचित हैं। वे केवल एक दूसरे के साथी और सहयोगी हैं, गुलाम नहीं
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
ई. वी. रामास्वामी पेरियार ने युवाओं से रामायण जैसे मनुवादी ग्रंथों को जलाने का आह्वान किया था। वे मानते थे कि मनुवादी पुस्तकें लोगों को न केवल मूर्ख बनाती हैं, बल्कि उन्हें गुलाम बने रहने के लिए बाध्य भी करती हैं। पढ़ें 21 फरवरी 1943 को उनके द्वारा दिया गया ऐतिहासिक भाषण :