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अब सोचना पड़ेगा कि क्या बहुजन साहित्य उत्सव उसे कहा जा सकता है जो सिर्फ दलित और पिछड़ी जाति के कुछ लोगों को एकत्रित करके मनाया गया हो या इसकी अपनी वैचारिकी धारा है?