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आज जब पूरे देश में दलित विमर्श और दलित आंदोलन की धूम है, तो हमें कहानीकार, उपन्यासकार और नाटककार मधुकर सिंह याद आते हैं। हमें इस साहित्यिक पुरोधा को याद करना चाहिए और उनके द्वारा रचित साहित्य के आलोक में सामाजिक, राजनीतिक आंदोलन की पड़ताल करने की जरूरत है। बता रहे हैं कुमार बिन्दू
भाषा वैज्ञानिक डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने अपनी पुस्तक ‘खोए हुए बुद्ध की खोज’ में भारतीय इतिहास के कई अनछुए अध्याय-पहलू को उजागर किया है। वे बुद्ध, बौद्ध सभ्यता और खासतौर से प्राचीन भारतीय इतिहास को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने के लिए प्रेरित करते हैं
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वंदे मातरम् , जयहिंद और इंकलाब-जिंदाबाद तीन नारों का जन्म हुआ था। पहले नारे का संबंध बंकिमचंद्र चट्टोपध्याय, दूसरे का संबंध सुभाषचन्द्र बोस और तीसरे का संबंध भगत सिंह से है। इन नारों की महत्ता क्या है और आज क्यों अन्य नारों को खारिज कर वंदे मातरम् पर जोर दिया जा रहा है, बता रहे हैं, कुमार बिंदु :
The dwijs have always cast a long shadow over the nationalist and the leftist perceptions of Indian history. These perceptions were challenged by Bahujan scholars, who saw history from the Bahujan perspective. Rajendra Prasad Singh is one such a scholar. Kumar Bindu analyzes his historical perspective
भारतीय इतिहास को देखने की राष्ट्रवादी और वामपंथी दृष्टियों पर द्विज दृष्टि की छाया रही है। इन इतिहास दृष्टियों को बहुजन समाज में जन्में अध्येताओं ने चुनौती दी और बहुजन दृष्टि से इतिहास को देखा। ऐसे अध्येताओं में राजेन्द्र प्रसाद सिंह भी शामिल हैं। उनकी इतिहास दृष्टि की विवेचना कर रहे हैं कुमार बिन्दु :