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यह सही है कि फिल्में मुनाफा कमाने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं और उनसे किसी सामाजिक क्रांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन मुनाफे के नाम पर नायक का केंद्रीय चरित्र सिर्फ उंची जाति का हो तो यह फिल्मकारों का जातिवाद ही है। बता रहे हैं कुमार भास्कर