आप देख ही रहे हैं कि ज्यादातर राज्यों में सत्ता सवर्णों के हाथ से खिसककर पिछड़ी जाति के लोगों के हाथ में आ गई है। कहीं जाट, कहीं यादव, कहीं कुर्मी, कहीं मराठा, कहीं मोदी तो कहीं अन्य पिछड़ी जाति के लोग सत्ता पर काबिज हैं और इन सभी राज्यों में दलितों के साथ ज़ुल्म-ज्यादती की खबरें बराबर आती रहती हैं। ऐसे में यह कैसे संभव है कि सिर्फ साहित्य को लेकर दलित और पिछड़े एक प्लेटफार्म पर आ जाएं