ज़रा सोचिए कि अगर ऐसा कुछ उत्तर भारत में हुआ होता तो क्या होता? क्या यहां का समाज उसे भी इसी तरह खामोश होकर देखता रहता या उसने आसमान सर पर उठा लिया होता? पक्की तौर पर पूरा समाज आंदोलित हो जाता। कहीं मोमबत्तियों का जुलूस निकल रहा होता तो कहीं लोग पुलिस और प्रशासन से जूझ रहे होते। मगर नगालैंड की घटना पर तो सन्नाटा है। सवाल उठा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मुकेश कुमार