आदिवासी दलित बहुजनों ने इक्कीसवीं सदी के मुख्यधारा के धर्म के रूप में स्थापित किए जा रहे, हिंदू धर्म में खुद को शामिल किए जाने के प्रयासों का लगातर विरोध किया है। साथ ही भारतीय महिलाएं राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ द्वारा निर्मित भारत माता की परिकल्पना को खारिज करते हुए राष्ट्र की अपनी छवियां गढ़ रही हैं. बता रही हैं निवेदिता मेनन :