आज जब हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं, तब भी फुले की अन्य रचनाओं और कार्यों के साथ इस पुस्तिका की भी प्रासंगिकता बनी हुई है। यह प्रासंगिकता तब तक रहेगी, जब तक भारत में धार्मिक एवं जातिगत संकीर्णताएं समानता, बंधुत्व एवं स्वतंत्रता की राह में अवरोध बन कर खड़ी रहेंगी। प्रकाश के रे की समीक्षा