Manual scavenging is a stigma on India. It was declared illegal 25 years back. Still, sewer deaths continue. It is not that resources for abolition of manual scavenging are lacking. It is continuing only due to government’s apathy, says Raj Valmiki.
मैला प्रथा भारत के लिए कलंक है। इसे गैर-कानूनी घोषित किये हुए 25 वर्ष हो गये, फिर भी सीवर/सेप्टिक टैंक में हत्याओं का दौर जारी है। मैला प्रथा उन्मूलन के लिए संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण इस कलंक को हम ढो रहे हैं। बता रहे हैं राज वाल्मीकि :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
बीते 25 सितंबर 2018 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अति पिछड़ा वर्ग के लोग बड़ी संख्या में जुटे थे। वे अपने वर्ग के लिए एससी और एसटी के जैसे कानूनों की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि अति पिछड़ा वर्ग की हालत एससी और एसटी से भी बदतर है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
1993 से लेकर अबतक 1790 सफाई कर्मियों की मौत सीवरों व सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के दौरान हो चुकी है। हाल के दिनों में दिल्ली में 6 सफाईकर्मियों की मौत हुई। इसके विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर सफाई कर्मियों ने प्रदर्शन किया और सरकार के समक्ष अपने सवाल व मांगें रखी। फारवर्ड प्रेस की खबर :
भाषा सिंह की पुस्तक ‘अदृश्य भारत’ इस सवाल का जवाब तलाशती है कि भारत में कोई क्यों अपने काम की वजह से सफाईकर्मी नहीं है बल्कि जन्म के चलते सफाईकर्मी है। राज वाल्मीकि की समीक्षा :
Is the inertia of caste breaking? Is there change in the air? Read Raj Valmiki’s story
क्या जाति की जड़ता टूट रही है, क्या कुछ है पुरानी रूढ़िगत सोच में, जो पिघल रहा है। पढ़ें राज वाल्मीकि की कहानी
Today’s youth should reject caste. They should not adopt the caste system just because their ancestors have passed it down to them
युवाओं की नई सोच कि जाति बेकार की चीज है और सिर्फ इसलिए कि यह हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली है हमें नहीं अपनानी चाहिए, जाति मुक्ति में सहायक है
Premkumar Mani’s articles and Dadu’s advice were a must-read for me. They were my favourite writers. FP not only awakened our society but also prepared the ground for new beliefs and thoughts
मैं प्रेमकुमार मणि के लेख और दादू की सलाह जरूर पढ़ता था। ये मेरे प्रिय लेखक थे। फॉरवर्ड प्रेस ने हमारे समाज को न केवल जागरूक किया, बल्कि नए विचारों की जमीन तैयार की
Dalit thinker H.L. Dusadh said that though there were many Dalit magazines in the country, in his view, only two – FORWARD Press and Dalit Dastak – were of any consequence
दलित चिंतक एचएल दुसाध ने कहा कि बहुत-सी दलित पत्रिकाओं में से वे सिर्फ दो को ही प्रमुख मानते हैं – फारवर्ड प्रेस और दलित दस्तक