सीवान उनके लिए पार्लियामेंट पहुंचने भर का प्लेटफॉर्म नहीं था, और ना ही केवल पार्लियामेंट जाने भर की जद्दोजहद तक के लिए वे आए थे। वे सीवान को क्रांतिकारी लोकतांत्रिक बदलाव के संघर्ष की प्रयोगभूमि बनाने के स्वप्न के साथ दिल्ली से बिहार आए। वे वहीं शहीद हुए, जहां पैदा हुए थे। लेकिन यह अनायास हुई शहादत नहीं थी। बता रहे हैं रिंकू यादव