भाषाविद् डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि ‘कामगार किसान, कारीगर, मजदूर और पशुपालकों का साहित्य ओबीसी साहित्य है। यदि भारतेन्दु से लेकर प्रसाद, रेणु और आजतक के ओबीसी कवि-साहित्यकारों तक के विपुल साहित्य का अध्ययन किया जाए, तो ओबीसी साहित्य का दायरा सबसे बड़ा है। हिन्दी साहित्य के सभी कालखंडों में इसकी पहचान की जा सकती है।’