प्रेमकुमार मणि के मुताबिक, मंगलेश मज़दूरों की, कमज़ोरों की, वंचित तबक़ों की आवाज़ थे। आज कितने कवि ऐसे हैं जो इन मूल्यों की बात करते हैं। उनके बिना हिंदी कविता बहुत दिन तक उदास रहेगी। हाशिए पर पड़े लोग हों या साहित्य से जुड़े लोग, उनकी कमी महसूस करते रहेंगे