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शिक्षकों की विभागवार भर्ती करने के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर के विश्वविद्यालयों के एससी, एसटी, ओबीसी के शिक्षक और राजनीतिक दल प्रदर्शन कर इस सिस्टम को निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाने की मांग रहे हैं
We have been hearing about a drive to raise the status of Vasundhara Raje to that of a goddess. Now, a BJP spokesperson says Narendra Modi is the 11th incarnation of Vishnu. Tejpal Singh ‘Tej’ reports
राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया को देवी बनाने की कवायद चल रही है। इसी तरह की एक कोशिश महाराष्ट्र में भाजपा के एक विधायक ने की है। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी विष्णु के 11वें अवतार हैं। बता रहे हैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
दिल्ली में प्राथमिक शिक्षक पद के अभ्यर्थियों से दलितों को अपमानित करने वाला सवाल पूछा गया। इस मामले में हालांकि दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ने माफी मांग ली है लेकिन क्या माफी मांगने से दलिताें का जो अपमान किया गया, उसकी भरपायी हो सकेगी? तेजपाल सिंह ‘तेज’ का सवाल
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दलितों के बीच से कुछ लोगों को हिंदू मंदिरों का पुजारी और शंकराचार्य या महामंडलेश्वर बनने का प्रलोभन दिया जा रहा है, क्योंकि दलितों का तेजी से हिंदू धर्म से मोहभंग हो रहा है। हिंदुत्ववादियों को यह डर सता रहा है कि कहीं 23 करोड़ दलित हिंदू धर्म न छोड़ दें। पूरे मामले का विश्लेषण कर रहे हैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ :
Recently in Gujarat’s Bhavnagar, Pradeep Rathod, a Dalit horse-riding enthusiast, was murdered. Over the years, scores of such incidents have been reported from different parts of the country. What is the mentality of the Savarnas that is behind these ghastly acts? Tejpal Singh ‘Tej’ looks for an answer
हाल ही में गुजरात के भावनगर में घुड़सवारी का शौक रखने वाले दलित प्रदीप राठौर की हत्या कर दी गयी। इससे पहले भी ऐसी घटनायें देश के अनेक हिस्सों में हो चुकी हैं। दलित घोड़े पर चढ़कर सड़क पर न चलें। सवर्णों की इस मानसिकता के बारे में बता रहे हैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ :
In this 21st century, when equipments are available to clean dirt, isn’t it inhuman to force someone to use their hands? Here is an analysis of the questions that have been raised following a judgment on the matter
आज इक्कीसवीं सदी में जबकि हर कार्य के लिए यंत्रों व उपकरण मौजूद हैं। क्या यह अमानवीय नहीं है कि किसी को हाथ से मैला उठाने के लिए बाध्य किया जाय। दक्षिण भारत के राज्य तामिलनाडु में इस मामले में अदालती फैसले के बाद उठ रहे सवालों का विश्लेषण कर रहे हैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ :
Bahujan Literature has established itself as a discourse. Several thought-provoking perspectives are coming to the fore, among which there are unities, collisions, agreements and disagreements. Given this context, Tejpal Singh ‘Tej’ presents his perspective
बहुजन साहित्य एक विमर्श के रूप में अपने लिए जगह बना रहा है। कई कोणों से कई विचारोत्तेजक नजरिए सामने आ रहे हैं, जिनमें एकता है, तो टकराहटें भी हैं, सहमति है, तो असमहमतियां भी हैं। प्रस्तुत है इस संदर्भ में तेजपाल सिंह, ‘तेज’ का नजरिया :
Ram Nath Kovind’s views on the welfare of Dalits do not inspire hope. His statements on different occasions reflect his poor understanding of the problems facing his community
दलित समुदाय की भलाई को लेकर रामनाथ कोविंद की दृष्टि बहुत आशाजनक नहीं लगती। विभिन्न अवसरों पर उनके बयान अपने समाज की समस्याओं के प्रति उनकी बेहद साधारण समझ के प्रतीक हैं। मौजूदा भारत में दलितों की स्थिति पर सुखदेव थोराट के शोध को खारिज करते हुए रामनाथ कोविंद ने कहा था कि खुले तौर पर दलितों के साथ होने वाले भेदभाव में तेज़ी से गिरावट आई है, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि सर्वत्र परिवर्तन के दौर में दलितों/अल्पसंख्यकों के साथ होने वाला भेदभाव दिखाई तो कम देता है, लेकिन उसका स्वरूप और ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के बाद भारतीय राजनीति में दलित राजनीति का विश्लेषण कर रहे हैं तेजपाल सिंह तेज :
Two processions held within a space of a few days brought Dalits in confrontation with Muslims and then with Rajputs. The circumstances in which the processions were held, the routes that were chosen and other related developments point to the pre-planned nature of these incidents
बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मोत्सव पर निकाली गई शोभायात्रा को लेकर दलित और मुसलमान तथा महाराणा प्रताप की जयंती के उपलक्ष्य में निकाली गई शोभायात्रा को लेकर राजपूत और दलित एक-दूसरे के सामने हैं। व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि दोनों ही फसाद किसी न किसी रूप में पूर्व-नियोजित हैं। पढ़ें तेजपाल सिंह ‘तेज’ का विश्लेषण :