पानसरे साहब ने कहानी की शुरुआत महाराष्ट्र-कर्नाटक में सामाजिक सुधार आंदोलनों से की और बताया कि किस तरह सन् 1845 के बाद ब्राह्मणवाद-विरोधी सत्यशोधक आंदोलन तेज हुआ था। पानसरे के मुताबिक ज्योतिबा फुले की अगुवाई में यह एक शूद्र और अतिशूद्र समाज-आधारित आंदोलन था। इस आंदोलन में तमाम तरह के विषयों पर नये विचार भी सामने आये। पढ़ें, उर्मिलेश की किताब में संकलित आलेख का एक अंश