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द्रौपदी मुर्मू : भाजपा की बिसात का अपराजेय मोहरा

Draupadi Murmu: BJP’s winning move

पांच मिनट में जानें हूल दिवस का महत्वपूर्ण इतिहास

Hul Diwas: A five-minute guide to its place in history

राजस्थान में अशांति के मायने

The road that led to the unrest in Rajasthan

दलित आलोचकों की नजर में ओमप्रकाश वाल्मीकि

How does Om Prakash Valmiki’s works fare in Dalit criticism

द्रौपदी मुर्मू : भाजपा की बिसात का अपराजेय मोहरा

शायद, ममता बनर्जी की अपने लिए एक केंद्रीय जगह बनाने की महत्वाकांक्षा को विपक्ष की कीमत चुकानी पड़ी। हालांकि संख्या पहले विपक्ष के पक्ष में थी, लेकिन यह स्पष्ट है कि यशवंत सिन्हा को विपक्ष के वोट भी नहीं मिल सकते क्योंकि अधिकांश क्षेत्रीय दल उन्हें वोट देने से पहले दो बार सोचेंगे। बता रहे हैं विद्या भूषण रावत

Draupadi Murmu: BJP’s winning move

Apparently, the opposition camp had to pay the price for Mamata Banerjee’s ambition of becoming the pivot of opposition unity. Initially, the opposition had the numbers, but now it is clear that Yashwant Sinha won’t even get the votes of all the opposition parties because regional parties will think twice before backing him, says Vidya Bhushan Rawat

पांच मिनट में जानें हूल दिवस का महत्वपूर्ण इतिहास

संताल आदिवासियों का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अलग स्थान रखता है। इसकी शुरूआत 1771 में तिलका मांझी के नेतृत्व में हुई। लेकिन 1855 में सिदो-कान्हू ने निर्णायक विस्तार दिया। इसे हूल विद्रोह कहा गया। जानें, इस विद्रोह की तिथिवार जानकारी

Hul Diwas: A five-minute guide to its place in history

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राजस्थान में अशांति के मायने

आज जो हो रहा है उसके पीछे वो ज़हरीली विचारधाराएं हैं, जिन्होंने सदैव इंसान और इंसान में भेद किया है, जो घृणा का कारोबार करते रहे हैं और लोगों के ज़ेहन को इतना विषाक्त कर चुके हैं कि वे किसी का भी अपमान कर सकते हैं। किसी को भी नीचा दिखाने और मिटाने के लिए कोई भी हद पार कर सकते हैं। बता रहे हैं भंवर मेघवंशी

The road that led to the unrest in Rajasthan

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दलित आलोचकों की नजर में ओमप्रकाश वाल्मीकि

दलित चेतना, सहानुभूति और स्वानुभूति लेखन में अंतर एवं दलित साहित्य की भाषा जैसे विषयों पर ओमप्रकाश वाल्मीकि ने तार्किक ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किये हैं, जो तर्कपूर्ण होने के साथ-साथ सठीक भी हैं। किंतु कुछ ऐसे संदर्भ हैं, जिनके बारे में उन्होंने अतार्किक सवाल अवैज्ञानिक ढंग से भी उठाये हैं, जो उनकी आलोचना दृष्टि पर सवाल खड़े करती हैं। बता रही हैं ज्योति पासवान

How does Om Prakash Valmiki’s works fare in Dalit criticism

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झारखंड के एक डोम टोले की बदहाली

बोकारो जिला मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर और चास प्रखंड मख्यालय से मात्र चार किलोमीटर दूर बोकारो-धनबाद फोरलेन राष्ट्रीय राज मार्ग-23 के तेलगरिया से कोयलांचल क्षेत्र झरिया की ओर जाने वाली सड़क के किनारे बसा है निचितपुर पंचायत का बाधाडीह गांव। इस गांव एक टोला है, जिसे डोम टोला के नाम से जाना जाता है। पढ़ें, विशद कुमार की आंखों-देखी रपट

A Dalit settlement in Jharkhand that votes but gets zilch in return

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समय को साहित्य में दर्ज करनेवाले सजग रचनाकार थे ओमप्रकाश वाल्मीकि

ओमप्रकाश वाल्मीकि की पहचान एक दलित कवि, कहानीकार अथवा दलित रचनाकार के सीमित दायरे में समेट दी गई। ऐसा साहित्य के क्षेत्र में तेजी से वैश्विक स्तर पर पहचान पाते उनके साहित्य तथा दुनिया भर में फैली उनकी ख्याति पर अंकुश लगाने हेतु किया गया या फिर साहित्यिक हलकों में भीतर तक फैले जातीय पूर्वाग्रह के कारण हुआ, कह पाना मुश्किल है। स्मरण कर रही हैं पूनम तुषामड़

The gritty realism in Om Prakash Valmiki's writings

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द्रौपदी मुर्मू के बहाने बहुजन विमर्श

द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी देश की बड़ी घटना है। अगर आप यह सवाल करते हैं कि उन्होंने पेसा को लेकर क्या किया और राष्ट्रपति बनकर वे क्या कर लेंगी, तो इस सवाल का जवाब तलाशना भी आपकी ही जिम्मेवारी है कि आजादी के 74 साल बाद भी देश को कोई आदिवासी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री क्यों नहीं मिला? बता रहे हैं रवि प्रकाश

Bahujan discourse surrounding Draupadi Murmu’s candidacy for president

Draupadi Murmu’s candidacy for president is a major development. If you ask what she did regarding PESA and what she would do about it as president, then you also need to answer why the country never got an Adivasi president or prime minister in the 74 years since Independence, writes Ravi Prakash

अभी हम आदिवासियों का पेट नहीं भरा है : वासवी किड़ो

‘विस्थापन झारखंड को खाए जा रहा है। झारखंड अलग राज्य अगर बना है तो विस्थापन का सवाल तो हल करना ही पड़ेगा। विकास का ऐसा मॉडल लाना पड़ेगा कि कोई आदिवासी गांव ना उजड़े। और जबतक यह मॉडल नहीं आएगा, हमलोगों को आंदोलन करना पड़ेगा।’ पढ़ें, वासवी किड़ो के साक्षात्कार का अंतिम भाग

Vasavi Kiro: ‘We want a displacement-free Jharkhand’

‘Displacement of people is killing Jharkhand. The problem of displacement has to be resolved, especially since we are now a separate state. We need a development model that ensures that Adivasis are not forced to abandon their villages. Until such a model is put in place and adhered to, we will have to agitate,’ says Vasavi Kiro

क्या भारत की डूबती आर्थिक नैया पार लगा सकेंगे ‘अग्निवीर’?

सरकार की पूंजीवादी प्रवृत्तियों के कारण देश आज भारी आर्थिक संकट में फंस गया है तथा श्रीलंका जैसे बड़े आर्थिक-सामाजिक संकटों में फंसने की पूरी संभावना सामने दिख रही है। भूमंडलीकरण में निहित नई आर्थिक नीतियों के कारण भारी पैमाने पर बेरोजगारी फैल रही है। भयानक आर्थिक संकट से निज़ात पाने के लिए सरकार इस नई नीति के बहाने सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली सेना में भारी कटौती करने जा रही है। बता रहे हैं स्वदेश कुमार सिन्हा

Agniveers to be raised to save India’s sinking economy?

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दलित-मुक्ति में हिंदी नवजागरण काल की पत्रकारिता और भूमिका

हिंदी नवजागरण में, चाहे वह उन्नसीवीं शताब्दी का हो या बीसवीं शताब्दी का, दलित कहीं केंद्र में नहीं है। इससे यह बात साफ हो जाती है कि शूद्र और अछूत को इस नवजागरण के प्रवर्त्तक हिंदू समाज का अंग नहीं मानते थे। वे अपने रचनाकर्म में हिंदुत्व और हिंदू धर्मशास्त्रों पर जिस तरह मुग्ध नजर आते हैं, उससे दलित-शूद्रों का जीवन उनके लिये चिंतनीय हो भी कैसे सकता था? पढ़ें, कंवल भारती के इस विस्तृत आलेख का पहला भाग

Hindi renaissance and Dalit liberation

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ISSN: 2456-7558
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