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बेजुबानों की जुबान लाल सिंह दिल की कविताएं

Lal Singh Dil’s poetry is the voice of the voiceless

समतामूलक समाज के लिए सृजन के संकल्प के साथ संपन्न हुई आंबेडकर जयंती

Report

राजमहल की पहाड़ियों के अस्तित्व पर खतरा, संकट में आदिवासी

Adivasis fight to save the Rajmahal hills

जोतिबा फुले : शोषित किसानों का साथी था ये महात्मा

Jotirao Phule: The Mahatma who identified with the exploited farmer

बेजुबानों की जुबान लाल सिंह दिल की कविताएं

लाल सिंह दिल अंतिम सांस तक अपने आसपास की शोषक व्यवस्था की बारीकियों का पर्दाफाश करते रहे। संघर्षों से भरे अपने जीवन में जो कुछ उन्होंने अनुभव किया उसे अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने कविताओं को अपना माध्यम बनाया। बता रहे हैं रौनकी राम

Lal Singh Dil’s poetry is the voice of the voiceless

Lal Singh Dil continued to capture the nuances of the exploitative system around him till his last moment. The medium that he chose to give expression to his experiences and observations during his life full of struggles was the subtlety of poetry, writes Ronki Ram

समतामूलक समाज के लिए सृजन के संकल्प के साथ संपन्न हुई आंबेडकर जयंती

बीते 14 अप्रैल को डॉ. आंबेडकर की 130वीं जयंती के अवसर पर गाजियाबाद में चार किताबों का विमोचन किया गया। इस मौके पर युवा बहुजन चित्रकारों की कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी लगाई गई

Report

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राजमहल की पहाड़ियों के अस्तित्व पर खतरा, संकट में आदिवासी

ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी और प्राकृतिक तौर से संपन्न राजमहल की पहाड़ियां सरकारी उपेक्षा और खनन कंपनियों की लालच के चलते धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर हैं और इसका सबसे बड़ा खमियाजा पहाड़िया और संथाल समुदाय को उठाना पड़ रहा है। बता रहे हैं मनीष भट्ट मनु

Adivasis fight to save the Rajmahal hills

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जोतिबा फुले : शोषित किसानों का साथी था ये महात्मा

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Jotirao Phule: The Mahatma who identified with the exploited farmer

In 1882, Jotirao Phule began touring the rural areas outside Pune, getting to know firsthand the plight of the kunbi cultivators, addressing large gatherings and organizing a boycott of Brahmins and moneylenders. The speeches that he wrote for these gatherings later became ‘Cultivator’s Whipcord’

कितनी सफल होगी मनुवाद को खारिज करने वाले मतुआ समुदाय को साधने की मोदी की कोशिश?

बीते 26 मार्च को बांग्लादेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओराकांडी में शिक्षा की बात कह रहे थे और बार-बार मतुआ समुदाय के अगुआ रहे हरिचंद ठाकुर व गुरुचंद ठाकुर का नाम ले रहे थे। इसके पीछे की उनकी राजनीति के बारे में बता रहे हैं ललित कुमार

Will Modi succeed in wooing the Matuas who once fought casteism?

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पटना में उपलब्ध है बौद्ध धर्म से जुड़ी पांडुलिपियों की दुर्लभ किताब, राहुल सांकृत्यायन और काशी प्रसाद जायसवाल की थी विशेष भूमिका

राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लायी गईं पांडुलिपियां आज भी पटना संग्रहालय परिसर में स्थित बिहार रिसर्च सोसायटी में संरक्षित हैं। वर्ष 1998 में एक खास किताब का प्रकाशन जापान की एक संस्था के सहयोग से किया गया। दुर्लभ पांडुलिपियों की यह किताब बिक्री के लिए भी उपलब्ध है, बता रहे हैं गुलजार हुसैन

Unique book on ancient Buddhist manuscripts available in Patna

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मानवशास्त्रीय ज्ञान सृजन की परंपरा में परिवर्तनकारी हस्तक्षेप करने वाले आंबेडकर और तत्कालीन चुनौतियां

हेसूस चायरेज बता रहे हैं 1928 में गठित स्टार्ट समिति के बारे में, जिसके एक सदस्य डॉ. आंबेडकर भी थे। इस समिति की जिम्मेदारी मुंबई प्रेसीडेंसी में निवासरत दलित वर्गों (अछूतों) और आदिम जातियों की शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति का अध्ययन कर उनकी बेहतरी के लिए अनुशंसाएं करनी थी

Ambedkar and the production of anthropological knowledge

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क्या असफल हो रहा डॉ. आंबेडकर का प्रयोग‍?

वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक भारत में बौद्ध धर्मावलंबियों की आबादी केवल 0.05 प्रतिशत थी जो वर्ष 1956 में डॉ. आंबेडकर के द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद वर्ष 1961 में 0.74 फीसदी हो गई। लेकिन बाद में इसमें कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। सवाल उठा रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप

Has Ambedkar’s experiment not succeeded?

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डॉ. आंबेडकर के विचारों से हम किसानों को मिलती है ताकत : गुरुनाम सिंह चढूनी

दिल्ली की सीमाओं पर किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब साढ़े चार महीने से आंदोलनरत हैं। उन्होंने इस बार आंदोलन स्थलों पर डॉ. आंबेडकर की जयंती मनाने का निर्णय लिया है। इस संबंध में सुशील मानव ने किसान नेताओं से बातचीत की

Gurnam Singh Chaduni: ‘We draw strength from Ambedkar’s thinking’

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एक अनोखे शादी समारोह में

बिहार के अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले खुश्बू और डॉ. दिनेश पाल ने अपनी शादी के लिए निमंत्रण कार्ड को 56 पृष्ठों की पुस्तिका “झब्बा” के रूप में प्रकाशित कराया। भोजपुरी में झब्बा का मतलब होता है चाबियों का गुच्छा। इस पुस्तिका में फुले, आंबेडकर, जगदेव प्रसाद, रामस्वरूप वर्मा, भगत सिंह व रामस्वरूप वर्मा की रचनाएं शामिल हैं। अरुण नारायण बता रहे हैं इस खास बौद्धिक विवाह के बारे में

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ISSN: 2456-7558
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