बहुजनों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दयनीय बनाए रखने का जो षड्यंत्र पीढ़ियों से चला आ रहा है, प्रेमचंद की इन कहानियों में इसकी सूक्ष्मता से पड़ताल सुनिश्चित की गई है। एक ओर इन कहानियों में श्रम का सौंदर्य है, वहीं दूसरी ओर इसी हाड़तोड़ श्रम पर पलने वाले सामंत, साहूकार, ज़मींदार और पंडे-पुरोहित के रूप में समूचा परजीवी वर्ग है, जिनकी परस्पर मिलीभगत से बहुजन वर्ग निरंतर छला जाता रहा है। अम्बरीन आफताब की समीक्षा