निश्चय ही दलितों को वह सब लिखना चाहिए और वह सब करना चाहिए जिससे उनका भला हो। परंतु उन्हें अपने दरवाजे और खिड़कियां अपने उन मित्रों के लिए खोलकर रखनी चाहिए जो बिना अपनी किसी गलती के दलित नहीं हैं। नि:संदेह इनमे से कई मित्र दलित लेखकों की रचनात्मक आलोचना भी करेंगे परंतु दलितों को याद रखना चाहिए कि कबीर ने कहा था,’निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय’