सरकार जानती है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, युवा बेरोजगार और परेशान हैं। इसलिए, तमाम विरोध के बावजूद यह बेरोजगार और परिवार की जरूरतों से परेशान युवा इस योजना को स्वीकार कर ठेके पर सेना में भर्ती को मजबूर हो जाएंगे। लेकिन, प्रारंभ में युवाओं ने विरोध करने का साहस दिखाया। बता रहे हैं अनुराग मोदी
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अग्निवीर के दिमाग में एक चिंता हमेशा रहेगी कि अगर चार साल के दौरान उसमें कोई अस्थायी अपंगता आई और वह मेडिकल जांच पास नहीं कर पाया या आवेदन के ठीक पहले किसी कारणवश उसका अंग भंग हो गया तो उसके 15 साल के लिए सैनिक बनकर एक सैनिक तरह सारे अधिकार पाने और देश की सेवा करने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। इन सब चिंताओं के बीच वह देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करेगा? पढ़ें, अनुराग मोदी का यह तथ्यपरक विश्लेषण
अनुराग मोदी विस्तार से बता रहे हैं कि ऐसे समय में जब देश के मजदूर सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे थे, सरकार ने उन्हें उनके हाल पर तो छोड़ ही दिया और कुछ देने के बजाय उनके अधिकार भी छीन लिये। ना तो मजदूर अपने वेतन को लेकर, ना बोनस को लेकर और ना ही अपनी सुरक्षा व अन्य मांगों को लेकर कुछ कह पाएंगे और ना ही हड़ताल कर सकेंगे
At a time when the toiling classes of the country were looking to the government for succour, they were not only left to fend for themselves but also stripped of their basic rights. Now they will neither be able make demands related to their wages, bonus and security at the workplace nor go on strike
अनुराग मोदी बता रहे हैं कि यूपी में योगी सरकार एक खास धर्म के लोगों को इसलिए निशाना बना रही है क्योंकि वह 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित कर लेना चाहती है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे गुजरात में मोदी-शाह की जोड़ी ने किया था
अनुराग मोदी बता रहे हैं कि नये कानून में जहां 63 बार वेज (मजदूरी) शब्द आया है, वहीं न्यूनतम मजदूरी क्या होगी या किस कानून के अनुसार होगी, इस बात का कोई जिक्र ही नहीं है। यहां तक कि प्रस्तावित “द वेज कोड बिल” जिसे हाल ही में कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दी है, उसका भी जिक्र नहीं है
हमारे देश की सोच इस कदर मध्यम वर्ग पर केन्द्रित हो गई है, कि नक्सलवाद और सरकारी दमन भी तब चर्चा में आता है, जब उच्च शिक्षित मध्यमवर्गीय शहरी कार्यकर्त्ता “अर्बन नक्सल” के नाम से गिरफ्तार होते हैं। हालांकि, कोई यह चर्चा नहीं करता है कि नक्सलवाद क्या है। अनुराग मोदी का मत :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
अगर हम मछली का कौशल उसके पेड़ पर चढ़ने की उसकी क्षमता से नापना शुरू कर दे, तो वह जिन्दगी भर अपने आप को बेवकूफ और नकारा समझती रहेगी। हमारी आज की वेतन व्यवस्था भी कुछ ऐसी ही है। और अगर इसे बदलना है, तो हमें हमारी मूल सोचना बदलना होगा और मजदूरों और किसानों के कौशल को सिर्फ श्रम बताकर मापना बंद करना होगा
Albert Einstein said, “If you judge a fish by its ability to climb a tree, it will live its whole life believing that it is stupid.” Our present system of determining wages metes out this fish treatment. If we are to transform it, we will have to think out of the box and stop lumping the skills of farmers and workers under the broad category of “manual labour”