एससी/एसटी या ओबीसी वर्ग के कुछ लोग आर्थिक रूप से भले ही सबल हो जाएं, उनके लिए सामाजिक हक़ीक़त में बहुत ज़्यादा बदलाव अभी भी नहीं हुआ है। उनकी सामाजिक स्थिति को लेकर सवर्णों के नज़रिए में आज भी बहुत ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया है और इस वजह से आरक्षण उनके लिए आज भी उतना ही ज़रूरी है। बता रहे हैं अशोक झा
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एससी-एसटी और ओबीसी के लिए नीति-निर्धारण में इन समुदायों की भागीदारी आज भी बहुत कम है। ऐसा प्रमोशन में आरक्षण देने में घाल-मेल के चलते है, जो उन्हें निर्णय के उन केंद्रों तक नहीं पहुंचने देता, जहां उनके बारे में निर्णय होता है। उनके बारे में नीतियों का निर्धारण निर्णय के केंद्रों पर विराजमान ऊंची जातियों के लोग करते हैं
बम्बई हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मराठा राजनीतिक रूप से सशक्त, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। इसलिए उन्हें आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि अदालत ने सरकार के 16 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव में संशोधन किया है
पेरियार की किताब ‘रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद 1970 के दशक में ललई सिंह यादव द्वारा प्रकाशित होते ही सनसनी फैल गई थी। अपने ‘आराध्य’ की सच्चाई सामने आते ही द्विजों घबरा उठे । यहां तक कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना कारण बताए ही किताब पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन अंतत: उसे मुंह की खानी पड़ी
जस्टिस ईश्वरैया के मुताबिक, 103वें संविधान संशोधन अधिनियम में संविधान के अनुच्छेद 46 की शर्तों को पूरा करने के लिए जिन उद्देश्यों और कारणों को गिनाया गया है, वे शरारतपूर्ण, संदिग्ध, और ग़लत हैं और ये सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों को हानि पहुँचाने वाले हैं
मध्य प्रदेश में दलितों पर अत्याचार करने का आरोप दो आरोपियों को महंगा पड़ा। उन्हें निचली अदालतों ने बरी कर दिया था। वे जिला जज पद के लिए क्वालिफाई भी कर गए। परंतु हाईकोर्ट ने उन्हें साफ कहा कि बरी होने का मतलब चरित्रवान होना नहीं होता
अमूमन लोग सोशल मीडिया पर बिना समझे-बूझे ही संदेश शेयर कर देते हैं। कई बार जानने-समझने के बावजूद सवाल खड़ा होने पर इनकार कर देते हैं। परंतु, मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि लोग संदेश तो शेयर करें, लेकिन सोच-समझकर। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
प्रो. नंदिनी सुंदर ने सलवा जुडूम मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में सुनवाई को स्थगित करने के छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार के आग्रह को नहीं मानने पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट 2011 के फैसले को नहीं मानकर कोर्ट के मुंह पर थप्पड़ मारा है। फारवर्ड प्रेस से खास बातचीत का संपादित अंश :
Prof Nandini Sundar expressed happiness over the Supreme Court’s refusal to grant a stay over the pending Salwa Judum hearings, requested by the central and Chhattisgarh governments. She opined that Chhattisgarh government has shown blatant disregard towards the Supreme Court by not following the 2011 verdict on Salwa Judum. Excerpts from her exclusive interview with Forward Press
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया। इस फैसले में सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी जस्टिस् चंद्रचूड़ ने की। उन्होंने हिंदू धर्म में व्याप्त जातिवाद को समाज के लिए खतरनाक माना और फुले और आंबेडकर का उद्धरण देते हुए इसे समूल खत्म करने का आह्वान भी किया। बता रहे हैं अशोक झा
The ban imposed on the entry of menstruating women into the Sabarimala temple in Kerala has been lifted by the Supreme Court. The most important observation in the judgment came from Justice Chandrachud. He said that the caste system would destroy our society. Quoting Phule and Ambedkar, he called for annihilation of the caste system. Ashok Jha reports