अगर दरवाजे पर अपने गीत गाकर नहीं आए होते गणेश गवैया, तो उसकी सूरत देखते ही बिदक गई होतीं आंगन में ब्राह्मणियां; मगर, हां, उस सूरत को पचाते देर नहीं लगी। फिर तो यह आलम हुआ कि विद्यापति के गीतों का अपना पूरा भंडार ही खोलना पड़ गया था गवैया गणेश को
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