‘बंगाल में जो हिंदी भाषी समाज है, वह अपने रुग्ण संस्कारों को छोड़ नहीं पाया और बंगाल का जितना खुलापन है, जो उदारवादी विचार है, उनको ग्रहण नहीं कर पाया। इसलिए मैं बंगाल को दोषी नहीं मानता। बंगाल में जो उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग आये, वे अपने जातिवाद के संस्कार को नहीं छोड़ पाए। दुख इस बात का है।’ पढ़ें, पश्चिम बंगाल दलित साहित्य अकादमी के सदस्य डॉ. विजय कुमार भारती का ज्योति पासवान द्वारा खास साक्षात्कार