विकलांग यदि पुरुष है तो उसे पितृसत्ता स्वाभाविक रूप से कुछ संबल प्रदान करती है, जिससे विकलांग स्त्रियां वंचित रह जाती हैं। उसमें भी वह यदि गरीब है, दलित है और ग्रामीण है तो उसकी समस्याएं गुणात्मक रूप से बढ़ती जाती हैं। बता रही हैं संध्या कुमारी
–
अपनी आत्मकथा ‘मुर्दहिया’ में डॉ. तुलसीराम ने एक साथ दो पीड़ाओं की अभिव्यक्ति की है। इनमें से एक तो जातिगत भेदभाव जनित पीड़ा है जो उन्हें समाज में झेलनी पड़ी। वहीं दूसरी पीड़ा उनके एक आंख के चले जाने के बाद झेलनी पड़ी। खास यह कि यह पीड़ा देने वालों में उनका अपना परिवार भी शामिल रहा जो उन्हें ‘कनवा’ कहकर संबोधित करता था। बता रही हैं संध्या कुमारी