जात-पॉंत तोड़क मंडल का गठन नवंबर, 1922 में हुआ था। इस मंडल ने जाति व्यवस्था के खिलाफ संगठित रूप से अभियान की शुरूआत की। हालांकि वर्णाश्रम को लेकर इसके सदस्यों में मत भिन्नता रही, परंतु उन दिनों जाति के खिलाफ जो बिगूल फूंका गया, उसकी अनुगूंज भारत के अलग-अलग हिस्सों में दूर तक सुनाई देती रही। इसके जनशताब्दी वर्ष के आगाज के पहले इसकी वैचारिकी और अंतरद्वंद्वों पर प्रकाश डाल रहे हैं युवा समालोचक सुरेश कुमार