हुल दिवस के मौके पर पढ़ें सुरेश जगन्नाथम का विशेष लेख। इसमें वह बता रहे हैं नियमगिरि पहाड़ियों में रहने वाले डोंगरिया कोंद व कुटिया कोंद समुदाय के लोगों द्वारा चलाए जा रहे आदोलन में उपयोग किए जाने वाले लोकगीतों के बारे में। उनके मुताबिक, यह वही परंपरा है जिसकी मुखर अभिव्यक्ति संथाल हुल से लेकर उलगुलान तक में होती है
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सरहुल पर्व के मौके पर एक गीत में असुर जाति के आदिम आदिवासी जंगल में आग लगने पर चींटियों के मारे जाने पर शोक मनाते हैं। उनका यह गीत उन सभी के लिए संदेश मात्र है जो उन्हें उनकी जाति यानी असुर की अपमानजनक तरीके से व्याख्या करते हैं। बता रहे हैं सुरेश जगन्नाथम :
During the Sarhul festival, Asurs sing a mournful song over ants being unable to escape the fire in a forest. Just this one song from their huge repertoire sends out an apt message to those who call them names, writes Suresh Jagannatham
असुरों को सिन्धु-सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में जाना जाता है। मानवविज्ञानी एससी राय ने इन्हें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से सम्बंधित बताया है तथा इन्हें ताम्र-कांस्य और लौह-युग का यात्री माना है। असुर शब्द का उल्लेख ऋग्वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों में हुआ है
It is believed that Asurs founded the Indus Valley Civilization. Anthropologist S.C. Rai links them to Mohenjodaro and Harappa and says they go back to the Copper-Bronze and Iron ages. The word “Asur” is found in the Rigveda, the Puranas and other scriptures