रमा, मैं ज्ञान का सागर निकाल रहा हूं। मुझे और किसी का भी ध्यान नही है। परंतु यह ताकत जो मुझे मिली है, उसमें तुम्हारा भी हिस्सा है। तुम मेरा संसार संभाले बैठी हो। आंसुओं का जल छिड़ककर मेरा मनोबल बढ़ा रही हो। इसलिए मैं बेबाक तरीके से ज्ञान के अथाह सागर को ग्रहण कर पा रहा हूं।