बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई की नयी मेयर आर. प्रिया से जुड़ी खबर। साथ ही झारखंड सरकार द्वारा एससी और ओबीसी छात्र-छात्राओं को दिये विशेष तोहफे व बिहार के भागलपुर में हुई भीषण विस्फोट व मुजफ्फरपुर में जातिगत हिंसा की खबर
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बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नये आह्वान के अलावा डीयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के रिक्त पदों पर बहाली के संबंध में स्पेशल ड्राइव चलाने के बारे में। साथ ही यह भी कि बिहार में जहरीली शराब पीकर मरनेवाले अधिकांश दलित-पिछड़े हैं
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने बीपीएससी से दस दिनों के अंदर जवाब मांगा है। इसका सबब यह कि इस वर्ष बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर हुई नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों की अनदेखी के मामले प्रकाश में आए हैं। आरटीआई के द्वारा मांगी गयी जानकारी भी बीपीएससी को कटघरे में खड़ा करती है। रामकृष्ण यादव की रिपोर्ट
विभिन्न विश्वविद्यालयों में अस्टिटेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्तियां की जा रही हैं। प्रावधानों के मुताबिक मान्यता प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं में शोध लेख प्रकाशित होने पर अभ्यर्थियों को अंक दिए जाते हैं। यूजीसी ने स्पष्ट किया है कि उसकी पुरानी सूची में शामिल पत्रिकाओं में 2 मई, 2018 से पहले प्रकाशित लेख मान्य रहेंगे
Different universities have advertised vacancies for assistant and associate professors. Under the rules, marks are awarded to the candidates on the basis of the number of their research papers published in approved journals. The UGC has clarified that the papers published up to 2 May 2018 in journals figuring in the old list will continue to be valid
राज्य सरकार के नियम के मुताबिक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी यदि मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में अपनी जगह बनाते हैं तब उनकी नियुक्ति अनारक्षित कोटे में ही होगी। लेकिन आयोग द्वारा जारी परिणाम में इस नियम को दरकिनार कर सवर्णों को 50 फीसदी आरक्षण दे दिया गया है
हाल के दिनों में कई ऐसी खबरें आई हैं जिनमें असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर बहाली हेतु नियमों में बदलाव की बात कही गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसके लिए स्नातकोत्तर में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंक और नेट उत्तीर्णता की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
उच्च शिक्षण संस्थानों में सरकार ने शिक्षकों के लिए पीएचडी अनिवार्य कर दी है। एचआरडी मंत्री के बयान को गौर से पढ़ना चाहिए। सवाल है क्या इससे सार्वभौम स्तर पर उच्चशिक्षा में जैसी चुनौतियां हैं, उनसे निपटा जा सकता है? हम कितना लक्ष्य हासिल कर सकेंगे जबकि सरकार की कोशिश स्वदेशी तरीके से शिक्षकों को तैयार करने की है? कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :
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भारत में शिक्षा का द्वार शूद्रों-अतिशूद्रों के लिए हजारों वर्षों तक बंद रहा। आरक्षण के प्रावधान से यह दरवाजा थोड़ा खुला। इन वंचित तबकों को बराबरी के स्तर पर प्रतिनिधित्व मिलता, इससे पहले ही सरकारों ने चोर दरवाजे से आरक्षण खत्म करना शुरू कर दिया, यह सब कुछ कैसे घटित हो रहा है, बता रहे हैं चन्द्रभूषण गुप्त :
For thousands of years, the doors of education have been shut to Shudras and Atishudras. Reservations opened these doors just a little. Before the deprived people have got representation on a par with the others, governments are now withdrawing reservations through the backdoor. Chandrabhushan Gupt explains how this is happening