प्रेमकुमार मणि की किताब, ‘चिंतन के जनसरोकार’ किस तरह, अपने पाठकों को आजाद खयाल व्यक्ति के रूप में सोचने के लिए प्रेरित करती है, जीवन-जगत के प्रति संवेदनशील बनाती है, उसके सरोकारों को व्यापक और गहरा करती है, चीजों को देखने के नजरिये को बदल देती है, बता रही हैं सविता पाठक :