“प्रेमचंद ने ऐसी एक भी कहानी नहीं लिखी है जिसका सम्बन्ध किसान जीवन से हो और उसका किसान पात्र किसी अगड़ी या दलित जाति का हो! उनकी ऐसी कहानियों के जाति-विन्यास पर ध्यान देने से यही पता चलता है कि असली किसान केवल पिछड़ी जातियों के लोग हैं. ऊँची जातियों के लोग कृषि पर आश्रित तो हैं; मगर वे भू-स्वामी हैं, वे मेहनतकश किसान नहीं हैं।” फ़ारवर्ड प्रेस द्वारा शीघ्र प्रकाश्य प्रेमचंद की बहुजन कहानियों पर केंद्रित संकलन में भी यह बात उभर कर आती है। प्रकाश्य पुस्तक की पांडुलिपि के मद्देनज़र लिखा गया कमलेश वर्मा का लेख :