शूद्र-अतिशूद्र कही जानी वाली जातियों के बीच पैदा होने वाले कवियों की एक लंबी परंपरा रही है। इस परंपरा के एक महत्वपूर्ण कवि संत रैदास हैं। उन्होंने वर्ण-जाति व्यवस्था को निर्णायक चुनौती दी और एक समाज-स्वप्न देखा जिसमें कोई उंच-नीच न हो और जहां हिंदू-मुस्लिम के आधार पर कोई भेदभाव न हो, जहां मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार जन्म नहीं, बल्कि उसके मानवीय गुण हों