पहले साहित्य का मतलब कुछ लिखे हुए शब्द भर नहीं होते थे। उसमें लेखक का व्यक्तित्व समाहित होता था, उसकी प्रतिबद्धता होती थी। लेखक का मतलब होता था- एक सच्चा इंसान, जिसे खरीदा नहीं जा सकता। अब साहित्य खाये-अघाये लोगों द्वारा अपहृत कर लिया गया है
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