छत्तीसगढ़ में गैर ब्राह्मणों द्वारा भागवत कथा वाचन को लेकर वहां के ब्राह्मणों का आक्रोश एक बार फिर देखा जा रहा है। इसके पहले तेली (ओबीसी) जाति की महिला कथावाचक यामिनी साहू को लेकर इसी तरह का बवाल खड़ा किया गया था। इसके बारे में बता रहे हैं संजीव खुदशाह
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छत्तीसगढ़ में यह एक नया मामला सामने आया है। पिछले दस साल से भागवत कथा का प्रवचन करने वाली तेली समाज की यामिनी देवी को ब्राह्मणों ने धमकियां दी है। इसके बारे में बता रहे हैं संजीव खुदशाह
काफी समय बाद नागपुर विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में जाना हुआ तो ज्ञात हुआ कि टाकभौरे जी आंबेडकरी विचारों को लेकर पीएचडी कर रहे है। हालांकि उनकी पीएचडी पूरी नहीं हो पाई। लेकिन यह देख कर आश्चर्य होता है कि एक 70-80 साल का बुजुर्ग इस उम्र में भी पढ़ाई कर रहा है। स्मरण कर रहे हैं संजीव खुदशाह
बहुजन मीडिया को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है। दलित-बहुजन समाज के वे सक्षम लोग जो विज्ञापन दे सकते हैं, मुख्यधारा की मीडिया के बजाय बहुजन मीडिया संस्थानों को विज्ञापन दें। अधिक से अधिक लेखन करें और प्रसार करें। संजीव खुदशाह का विश्लेषण
इस आंदोलन में भूमिहीन छोटे किसान, बटाईदार आधिहा रेगहा लेने वाले किसानों को शामिल कर आंदोलन का विस्तार किया जा सकता है। बता रहे हैं संजीव खुदशाह
दीपावली श्रमण परंपरा का उत्सव है जो छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, बिहार व उत्तर प्रदेश सहित देश के एक बड़े हिस्से में मनाया जाता है। लेकिन इसे ब्राह्मण परंपरा में रंग दिया गया है। बता रहे हैं संजीव खुदशाह
पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर क्यो सवर्ण समाज में समाज सुधार की ज्यादा जरूरत है। डॉ. आंबेडकर कहते हैं कि समस्या सवर्ण समाज में है। अत: सुधार वहां होना चाहिए। लेकिन ये लोग वंचितों को सुधारने में लगे रहते है। और सवर्ण समाज को शोषण करने की खुली छूट देते रहते है। संजीव खुदशाह का विश्लेषण
इन जातियों के लोगों को डॉ. आंबेडकर के विचारों से जोड़ने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। निश्चित तौर पर इसमें शेष दलित जातियों को पहल करनी होगी, ताकि अमानवीय पेशे से उन्हें मुक्ति मिल सके। इसके लिए राजनीतिक एकता बहुत जरूरी है। संजीव खुदशाह का विश्लेषण
फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित और दलित पैंथर के सह-संस्थापकों में से एक ज. वि. पवार द्वारा लिखित “दलित पैंथर : एक आधिकारिक इतिहास” एक दस्तावेज़ है, जिसके आधार पर 1970 के दशक में महाराष्ट्र में हुए क्रांतिकारी दलित आंदोलन के सभी पहलुओं को समझा जा सकता है
संजीव खुदशाह बता रहे हैं कि डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म को लोकतंत्र के लिए विसंगत बताया था। यदि आज वे होते तो बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत होते