यह आवश्यक है कि हिंदी को जबरन न थोपा जाए। हर राज्य का निवासी जब अपनी भाषा में पढ़ेगा तो अच्छा रहेगा। लेकिन यह याद रखा जाना चाहिए कि हमें अपनी भाषाओं में ज्ञान कोश बढ़ाना है और उन्हें सांस्कृतिक तौर पर मजबूत करना है। बता रहे हैं विद्या भूषण रावत
We need to enrich our languages and make them culturally stronger. Mere devotion to one’s language won’t do. Languages should become vehicles of change by incorporating the literature and style of those who want to transform society, says Vidya Bhushan Rawat
आगामी 14 व 15 मार्च को क्रमश: विशाखापट्टनम व हैदराबाद में ज. वि. पवार द्वारा लिखित पुस्तक “दलित पैंथर : एक आधिकारिक इतिहास” के तेलुगू रूपांतरण का विमोचन होगा। पवार कहते हैं कि दलित पैंथर के आंदोलन के बारे में देशभर के लोग जानें और संगठित होकर संघर्ष करें। यही उनके लेखन का उद्देश्य रहा है।
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सावित्रीबाई की जीवनगाथा उनके असाधारण साहस और सत्यनिष्ठा को प्रतिबिम्बित करती है। ललिता धारा बता रही हैं कि 19वीं सदी के महाराष्ट्र में सावित्रीबाई को जाति, वर्ग और लिंग की दीवारें उनके संकल्पों को पूरा करने से रोक न सकीं
Savitribai’s life is a lesson in rare courage and integrity, writes Lalitha Dhara. The historic handicaps of caste, class and gender in 19th-century Maharashtra could not restrain or subdue her indomitable spirit
असुरक्षा के भाव से पीडित शासक वर्ग ने मराठी, तेलुगू, गुजराती, पंजाबी, बांग्ला, कश्मीरी आदि भाषायों के शब्द हिंदी में आत्मसात कर उसे अधिक स्वीकार्य बनाने की प्रक्रिया बाधित की
An insecure ruling class scuttled the plan of expanding Hindi – by borrowing and assimilating words from Marathi, Telugu, Gujarati, Punjabi, Bangla and Kashmiri – and making it more accessible
पुस्तक में लेखिका का एक प्रमुख तर्क यह है कि मुख्यधारा के हिंदी लेखकों की सामान्य धारणा के विपरीत, दलित साहित्य का उदय 1980 के दशक में दलितों की आत्मकथाओं और कथा साहित्य के प्रकाशन से बहुत पहले हो गया था। दलितों ने सन् 1920 के दशक में ही हिन्दी साहित्य में अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी थी
Dalits had found a voice of their own in Hindi literature as early as the 1920s
भारत का शासक वर्ग बड़ी चालाकी से अंग्रेजी का उपयोग अपनी छवि को चमकाने और आमजनों को अज्ञानी बनाये रखने के लिए कर रहा है
The members of the Indian ruling class today use English expediently, enhancing their image while keeping the masses ill informed