वास्तव में निर्गुणवाद अनीश्वरवाद का ही एक दार्शनिक रूप है। कह सकते हैं कि निर्गुणवाद के मूल में नैतिक लोकायतिक नास्तिकवाद है। कबीर अनीश्वरवादी ही थे। उन्होंने कभी पूजा नहीं की, कबीर ने कभी नमाज नहीं पढ़ी। वह जहां जाते थे, उसी को ईश्वर की परिक्रमा और जो काम करते थे, उसी को पूजा कहते थे। क्या यह नास्तिक भाव नहीं है? पढ़ें, कबीर जयंती के मौके पर कंवल भारती का यह विश्लेषण