आगामी 27 और 28 फरवरी को तीन कार्यक्रमों में फारवर्ड प्रेस द्वारा हाल ही में प्रकाशित इस किताब का विमोचन किया जाएगा। दो कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रविदास महासभा और सावित्रीबाई फुले जन साहित्य केंद्र के तत्वावधान में होंगे। जबकि वेबिनार का आयोजन फारवर्ड प्रेस द्वारा होगा
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बीते 20 फरवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में दो किताबें “बहुजन हुंकार” और “हिंदू धर्म की पहेलियां” का विमाेचन किया गया। इस मौके पर कवि व समालोचक प्रो. कालीचरण स्नेही ने बताया कि जिसे मनुवादी कलियुग कहते हैं, वह हमारा स्वर्णयुग है। फारवर्ड प्रेस की खबर
विजया बुक्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह “बहुजन हुंकार” व फारवर्ड प्रेस द्वारा हाल ही में प्रकाशित “हिंदू धर्म की पहेलियां” का विमोचन 20 फरवरी को उन्नाव जिले में लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. कालीचरण स्नेही करेंगे। इस मौके पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है जिसका विषय “बहुजन मुक्ति आंदोलन में बहुजन साहित्य की भूमिका” है
संतराम जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि वे स्वामी दयानंद के सिद्धांतों से प्रभावित हो गए कि वर्णव्यवस्था जन्म से नहीं बल्कि गुण-कर्म और स्वभाव से होती है। लेकिन जब वे आर्य समाज मे सक्रिय हुए तो जल्दी ही इस संगठन का मुलम्मा उतारने लगा और इसका असली रूप सामने आने लगा। बता रहे हैं रामजी यादव
डॉ. आंबेडकर द्वारा हिंदू धर्म की हकीकत बताने वाली अंतिम किताब (एनोटेटेड संस्करण) खास आपके लिए ही है। आज ही घर बैठे खरीदें। मूल्य 200 रुपए (अजिल्द) और 400 रुपए (सजिल्द)
जोगेंद्रनाथ मंडल के समग्र जीवन का विश्लेषण करने पर हम पाएंगे कि यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य ही है कि वह उनका समर्थन न कर उन्हें पाकिस्तान जाने पर बाध्य किया। लेकिन उनकी लड़ाई दलित समाज की हुंकार की लड़ाई थी, दलित समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई थी। बता रहे हैं कार्तिक चौधरी
रूपाली बताती हैं कि वह स्वयं दलित समुदाय से आती हैं और उनके सामने बड़ी चुनौती यही थी कि कोई संसाधन नहीं था। एक टीशर्ट से जो पैसे मिलते उससे दूसरा टीशर्ट और फिर इस तरीके से इस उद्यम को आगे बढ़ाया है
उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में मनुस्मृति दहन दिवस का आयोजन किया गया। इस मौके पर दलित-बहुजन लोगों ने मनुस्मृति के साथ ही केंद्र सरकार के उन कानूनों की प्रतियां जलाईं जिनसे इन वर्गों के लोगों का अहित होता है। इनमें तीन कृषि कानून भी शामिल रहे। विशद कुमार की खबर
चूंकि संविधान देश के आदिवासियों, दलितों, अन्य वंचित पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के पक्ष में खड़ा है, इसलिए संघ उसे ही समाप्त कर देना चाहता है और यह कोई ढंकी-छिपी मंशा नहीं है, बल्कि बेहद स्पष्ट है। भंवर मेघवंशी का विश्लेषण
अनुसूचित जातियों और सामाजिक अन्याय के शिकार अन्य वर्गों को अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे कुल मिलाकर देश की आबादी का 90 प्रतिशत हैं और इतनी बड़ी जनसंख्या वाले लोग भला क्यों किसी की गुलामी सहेंगे। पटना में डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक संबोधन