कंगाली भाऊ की खासियत यह थी कि उन्होंने गोंडी भाषा, इतिहास और संस्कृति को एकदम जड़ से समझा और लोगों को बताया। वह उन गिने-चुने लोगों में रहे, सिंधु सभ्यता की लिपियां, जो हमारे गोंडवाना के पहाड़ों में बने गुफाओं में चित्रलिपि के रूप में आज भी दर्ज हैं, समझते थे। उन्होंने यह स्थापित किया कि सिंधु सभ्यता हमारी अपनी सभ्यता है। उसकी चित्रिलिपि हम गोंड समुदाय की लिपि है। स्मरण कर रही हैं उषाकिरण आत्राम