इतिहासविद पी. सनल मोहन का मानना है कि गांधीवादी राष्ट्रवादी विमर्श केवल अछूत प्रथा तक सीमित रहा। उनका कहना है कि उन्हें आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला है जो अपने-आप को 20वीं सदी का राष्ट्रवादी नेता बताता हो और जिसने केरल में जाति प्रथा पर अपने लेखन में गुलामी का ज़िक्र किया हो। पढ़ें विशेष साक्षात्कार की पहली कड़ी