पदोन्नति में आरक्षण संबंधी फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने क्रीमी लेयर लागू करने की बात कही है। भारत सरकार के पूर्व नौकरशाह पीएस कृष्णन ने जून 2012 में ही सरकार को आगाह किया था। उन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त निरस्त करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाने का सुझाव दिया है
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सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया है। बारह साल पहले के अपने फैसले को बदलते हुए उसने पदोन्नति में आरक्षण का रास्ता साफ कर दिया है। इसके साथ ही लंबे समय से चली आ रही कानूनी अड़चनों और अटकलबाजियों पर भी विराम लग गया है। फारवर्ड प्रेस की खबर
भारत सरकार के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट 2006 में आए एम. नागराज मामले में अपने फैसले की समीक्षा करने पर राजी हुआ। सरकार का तर्क है कि इस फैसले को लागू करने में मुश्किल पेश आ रही है और राज्य सरकारें पदोन्नति में आरक्षण चाहकर भी नहीं दे पा रही हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर:
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वर्ष 2006 में एम नागराज मामले में पांच जजों की पीठ ने कहा कि राज्य पदोन्नति में एससी और एसटी को आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है और एससी और एसटी पर क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं होगा। पर इस मामले में बीते 23 अगस्त 2018 को हुई बहस के दौरान पीठ ने पूछा कि क्या क्रीमी लेयर का सिद्धांत एससी और एसटी पर भी लागू हो सकता है या नहीं। पढ़िए यह रपट :
In 2006, a five-judge bench of the Supreme Court, delivering the judgment in the M. Nagaraj case, had ruled that the government is not bound to give reservation in promotions to the SCs and STs and also that the creamy-layer formulation cannot be applied to the two communities. Now, a decade on, another Supreme Court bench is considering a review of both those rulings
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से साफ़ कहा है कि दलितों और आदिवासियों का पिछड़ापन अभी दूर नहीं हुआ है और इसलिए उनके आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का मामला लागू नहीं होता है। परंतु केंद्र ने क्रीमी लेयर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी का बचाव नहीं किया। बता रहे हैं अशोक झा :
The union government has told the Supreme Court that the Dalits and the Tribals have yet to come out of their backwardness, hence, the ‘creamy layer’ principle cannot be applied to reservations for them. But it did not touch on the issue of ‘creamy layer’ for OBC reservations
अनुच्छेद 16(4) राज्यों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करता है। इस मामले में एम नागराज मामले के अपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट अब पुनर्विचार कर रही है। लेकिन हरिभाऊ राठोड का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस अनुच्छेद में एससी-एसटी को घसीटे जाने से भ्रम पैदा हो रहा है। पढ़िए फारवर्ड प्रेस की यह रिपोर्ट :
Article 16(4) of the Constitution allows the State to introduce reservation in promotions. The Supreme Court now reviewing its own judgment in the case ‘M. Nagaraj versus the Union of India’ but Haribhau Rathod says that the apex court is creating suspicion by expanding the Article’s purview to include SCs and STs. A Forward Press report
पदोन्नति में केंद्र में 22.5 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। इसका अर्थ यही है कि केंद्र में सामान्य वर्ग के लिए 77.5 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 67 प्रतिशत पद उपलब्ध है । जबकि सामाजिक न्याय का तकाजा है कि पिछड़े हुए वर्ग के लोगों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिले। सर्वोच्च न्यायालय से इस मामले में उदारतापूर्वक विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं हरिभाऊ राठौड़