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यह कांशीराम के सतत आंदोलन का ही परिणाम था कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान अपने हक-हुकूक के लिए जागरूक हुए। जब यह आंदोलन चल रहा था तब लोगों का नारा था – ‘कांशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।’
कांशीराम का जीवन स्वयं में एक आंदोलन है। एक ऐसा आंदोलन जिसने उत्तर भारत के बहुजनों की सोच को नया आयाम दिया। उन्हें ताकत दी और बताया कि 85 फीसदी बहुजन कैसे इस देश के संसाधनों पर अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। उनके जीवन और योगदान के बारे में बता रहे हैं अलख निरंजन
एच. एल. दुसाध बता रहे हैं कांशीराम के सपने और उनके संघर्ष के बारे में। उनके मुताबिक यदि आज कांशीराम होते तो बहुजनों को धन-धरती का मालिक बनाने के अपने सपने को पूरा कर रहे होते
इस काल्पनिक पत्र के माध्यम से सिद्धार्थ बता रहे हैं कि कांशीराम के अनुसार राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का
बसपा के पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद के मुताबिक, कांशीराम ने दलितों और ओबीसी के बीच एक विश्वास कायम किया था। उस विश्वास को मायावती तोड़ रही हैं
देश में अब तक कुल 48 लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें 66 फीसदी से अधिक अकेले द्विज हैं। यदि उच्च जातीय हिंदू-मुस्लिम को मिलाकर देखें, तो भारत रत्न पाने वालों में 80 फीसदी संख्या इन्हीं की है। इसका मतलब यह नहीं कि अन्य वर्गों में इस सम्मान के हकदार नहीं हुए; हुए, पर सम्मान नहीं मिला
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
हम देश भर के बहुजन समाज के लोगों व संगठनों से अपील कर रहे हैं कि वे अपने बैनर, पोस्टर व अस्तित्व को बनाए रखते हुए एक छतरी के नीचे आएं, ताकि बहुजन समाज की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी जा सके। बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम से विशेष बातचीत :
Prempal Sharma argues that annihilation of caste calls for comprehensive efforts and goes on to dwell on the roles of the various groups striving to build an egalitarian society
जातिमुक्ति के लिए समग्रता में प्रयास और खासकर समानता के लिए संघर्षरत समूहों की भूमिका की आवश्यकता बता रहे हैं प्रेमपाल शर्मा
A bare reading of the collection of his speeches is enough to see why Kanshiram, during the initial days of his movement, laid equal stress on collecting resources, motivating people, sharpening organisational skills and developing Bahujan media
भाषणों के संकलन के अध्ययन के दौरान यह महसूस किया जा सकता है कि कांशी-राम अपने शुरू के दिनों में आंदोलन के तरीके विकसित करने, संसाधन जुटाने, लोगों को प्रेरित करने और बहुजन मीडिया की जरूरत को एक साथ, बार-बार क्यों उठाते हैं।
In modern India, our nation-builders created a humanistic system of reservations to ensure that the deprived majority gets its due in the power structure
शक्तिसंपन्न तबकों ने धीरे-धीरे दलित, आदिवासियों को मिले आरक्षण को झेलने की तो मानसिकता विकसित कर ली, किन्तु जब मंडल की सिफारिशों पर 1990 में पिछड़ों को आरक्षण मिला तो शक्तिसंपन्न तबके के युवाओं ने आत्मदाह से लेकर राष्ट्रीय संपत्ति की दाह तक का सिलसिला शुरू कर दिया। बता रहे हैं एच. एल. दुसाध