इतिहासकार काशीप्रसाद जायसवाल हिन्दू-मुस्लिम-एकता को जरूरी समझते थे। उनका मत था कि ताली एक हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथ से बजती है। क्योंकि अधिकांश हिन्दू साहित्यकार अपने उपन्यासों में मुसलमानों को अत्याचारी और हिन्दुओं को सदाचारी के रूप में चित्रित कर रहे थे, इसलिए जायसवालजी इस कृत्य को राष्ट्रीय एकता में बाधक के रूप में देख रहे थे। बता रहे हैं कंवल भारती