यदि कुछ लोग इस विवाद में पड़े रहना ही चाहते हैं तो उचित होगा कि वे ‘रामायण’ के शुद्धिकरण का आंदोलन भी अपने हाथ में लें। उनके पुरखे की कृति ‘पौलत्स्यबध’ में तो केवल पांच अध्याय थे। राम को विष्णु का अवतार बताने वाले दो अध्याय और प्रक्षेपित कर ‘रामायण’ बना देने का काम तो बहुत बाद में हुआ