अभी हाल ही में बेगूसराय में गिरिराज सिंह द्वारा डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद प्रतिमा को राजद और सीपीआई के कार्यकर्ताओं ने तथाकथित तौर पर पवित्र किया। इस मौके पर आंबेडकर और फुले के नाम के नारे लगाए गए। नवल किशोर कुमार बता रहे हैं कि बिहार में फुले और आंबेडकर की वैचारिकी कैसे प्रासंगिक बनती जा रही है
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गैर कांग्रेसवाद को लेकर जनसंघ और आरएसएस से हमारा संबंध पहले भी रहा है। आज भाजपा के साथ गठबंधन कोई नई बात नहीं है। लोहिया, जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर आदि भी जनसंघ के साथ थे
ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी सोची-समझी और आरएसएस के ‘‘श्रम विभाजन’’ का भाग थी। यह बार-बार कहा जाता है कि जो लोग घृणा फैला रहे हैं वे मुट्ठीभर अतिवादी हैं जबकि सच यह है कि वे लोग शासक दल के प्रमुख नेता हैं
It now seems that Modi’s silence was deliberate and in keeping with the “division of labour” by the RSS. Those making these hateful statements are not fringe elements as some have described them; they are part of the core agenda