अभय कुमार का तर्क है कि “उदारवादी-प्रगतिशील” बुद्धिजीवियों का बड़ा तबका, गांधीवाद से इतना गहरे तक प्रभावित है कि वह इस प्रश्न पर निरपेक्षता से विचार कर ही नहीं सकता कि क्या गाँधी ने ‘पवित्र गाय’ के विमर्श को केंद्र में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी