राजन कुमार से विशेष बातचीत में ‘दलित आदिवासी दुनिया’ के संपादक मुक्ति तिर्की बता रहे हैं पश्चिम बंगाल और असम के चाय बागानों में काम करने वाले आदिवासी श्रमिकों के बारे में। उनके मुताबिक वे दो सौ साल बाद भी बंधुआ मजदूर हैं। उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। वहीं असम में उन्हें एसटी का दर्जा भी हासिल नहीं है
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मध्यभारत के इन आदिवासियों ने पहले अपनी ज़मीन और अपने जंगल खोये और अब उनकी विशिष्ट संस्कृति भी गुम होती जा रही है। उनके पास अपना कहने को कुछ बचा ही नहीं है
These Tribals of central India, who once lost their forests and lands, now stand to lose their distinct culture. They have little that they can call their own