द्विज-चिंतन और दलित-चिंतन में यही मूल अंतर है कि द्विज-चिंतन संश्लेषण करता है, विश्लेषण नहीं। द्विज-चिंतन ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि रावण अगर ब्राह्मण था, तो ब्राह्मण उसके खून के प्यासे क्यों थे? रावण अगर ब्राह्मण था, तो रामायण में उसे राक्षस-राज क्यों लिखा गया है? जगदीश गुप्त ने मनुस्मृति के उस विधान को भी नजरअंदाज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि ब्राह्मण अवध्य है। पढ़ें, कंवल भारती द्वारा यह पुनर्पाठ