जाति मूलत: द्विज वर्ग के हितों की सुरक्षा हेतु निर्मित असमानताकारी और स्वार्थपरक व्यवस्था है। उसके चलते ही संभव हुआ कि पंडित जी के घर “पंडित” जन्म लेने लगे। यदि सबकुछ बिना हाथ-पैर हिलाए-डुलाए मिलता है तो देह को कष्ट क्यों दिया जाए! इससे अध्ययन-मनन का सिलसिला “राम-राम” जपने; तथा कर्मकांड तक सिमट गया। बता रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप